Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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से, आन्दोलित रत्न-हारों से, स्वर्ण-छुरिका सह स्वर्ण-मेखला से, घण्टिका युक्त स्वर्ण-नपुरों से और कुञ्चित केशदाम से वे किसके आनन्द को वद्धित करने में समर्थ नहीं थे ? (श्लोक १९७-२०३)
___ राजा पर्वत का जीव जब प्राणत नामक स्वर्ग से च्युत हुआ तब हंस जैसे सरोवर में अवतरित होता है उसी प्रकार वे रानी उमा के गर्भ में अवतरित हुए। वे जब सुख-शय्या पर सोयी हुई थीं उन्होंने वासुदेव के जन्म सूचक सात महास्वप्नों को अपने मुख में प्रवेश करते देखा। नौ मास साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर वर्षा ऋतु जैसे मेघ को जन्म देती है उसी प्रकार रानी उषा ने कृष्णवर्ण एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र-जन्म के आनन्द से मानो ब्रह्मानन्द प्राप्त हुआ हो ऐसे राजा ब्रह्मा ने धनदान देकर प्रार्थियों को आनंदित किया। जिस दिन ग्रह, नक्षत्र और चन्द्रमा शुभ लग्न में अवस्थित था उस दिन उत्सव सहित उन्होंने पुत्र का नाम रखा द्विपृष्ठ ।
(श्लोक २०४-२०८) विभिन्न कार्यों के लिए नियुक्त पाँच धात्रियाँ उसी प्रकार उनका लालन-पालन करने लगीं जिस प्रकार प्रांगण में लगी अशोक वृक्ष की सेवा आश्रम-कन्याएँ करती हैं। गिरगिट की तरह प्राणवान द्विपृष्ठ जब दौड़ते-उछलते, इच्छानुसार विचरण करते तब धात्रियाँ उन्हें पकड़ नहीं पातीं। पिता-माता और अग्रज के सम्मुख इसी प्रकार द्वितीय वासुदेव बड़े होने लगे। बलराम विजय स्नेह के वशवर्ती बने छठी धात्री की तरह उन्हें कभी कमर पर, कभी छाती पर, कभी गले पर, कभी पीठ पर बैठाकर बाहर ले जाते । स्नेह के वशीभूत हए द्विपृष्ठ भी विजय का अनुकरण कर खड़े होते, चलते, बैठते, खाते और सोते । पिता के आदेश से अलंघ्य वासुदेव और बलराम ने यथासमय उपयुक्त शिक्षकों से समस्त विद्या अधिगत कर ली। दोनों भाई जिनमें एक गौरवर्ण और दूसरा कृष्ण वर्ण का था अतल क्षीर समुद्र और लवण समुद्र-से प्रतिभासित होते थे। गाढ़ा नीला और पीत वस्त्र पहनने वाले तालध्वज और गरुडध्वज राजा तारक के आदेश की अवहेलना करने लगे। (श्लोक २०९-२१६)
एक गुप्तचर ने उनकी अपराजेयता, बल और उनके द्वारा किया गया तारक के आदेश का विरोध और अवहेलना देखी। उसने तारक से जाकर कहा-'महाराज, द्वारिकाधिपति के दोनों