Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१७५ अधर्मी के लिए अलभ्य है। यह धर्म सदा साथ रहता है और वात्सल्य के साथ संसार-विपाक में पतित मनुष्यों की रक्षा करता है। समुद्र जो कि पृथ्वी को डुबाता नहीं और मेघ जो पृथ्वी को समृद्ध करता है यह धर्म के प्रभाव से ही होता है। अग्नि शिखा जो तिर्यकगामी नहीं होती, वायु उर्द्धगामी यह धर्म का ही अमोघ प्रभाव है। यह पृथ्वी जो कि अवलम्बनहीन आधारहीन होकर स्थिर है, जो सबका आधारभूत है, वह भी धर्म के प्रभाव से ही है। धर्म के शासन में ही लोक-कल्याण के लिए चन्द्र और सूर्य आलोक दान करते हैं । धर्म ही भ्रातृहीन का भाई है, बान्धवहीन का बन्धु, अनाथों का नाथ और सबका उपकारी है। धर्म ही जीव को नरक-पतन से बचाता है, धर्म ही सर्वज्ञ को अनन्तवीर्य प्रदान करता है।
(श्लोक ३०७-३१८) 'इस दसविध धर्म को मिथ्यादृष्टि लोग तात्त्विक दृष्टि से अभी नहीं देखते। यदि कोई इसका उल्लेख भी करे तो यह मात्र शब्दों का खेल होता है। जो जिन-धर्म के अनुसरणकारी हैं, केवल उन्हीं के मन, वचन व क्रिया द्वारा तत्त्वार्थ सुन्दर रूप से परिस्फुटित होता है। वेद के अध्ययन से ही जिस ब्राह्मण की बुद्धि आच्छन्न है वह धर्म रत्न के विषय में कुछ नहीं जानता । जो गोमेध, अश्वमेध, नरमेध आदि अनुष्ठानों में जीवों की हत्या करते हैं उन्हें धर्म कैसे प्राप्त हो सकता है ? असम्भव, असत्य और परस्पर विरोधी विषयों से भरे पुराणों की जिन्होंने रचना की है उनके पास क्या धर्म रह सकता है ? जो परद्रव्य-हरण के बारे में सोचते हैं और अग्नि एवं जल से शुद्धि का विधान देते हैं ऐसे स्मृति को जानने वाले ब्राह्मणों में क्या शुद्धता रह सकती है ? स्त्री-सेवन नहीं कर ऋतुकाल का जो उल्लंघन करते हैं उन्हें गर्भहत्या का पाप होता है ऐसे विधानों में ब्रह्मचर्य को नष्ट करने वाले ब्राह्मणों में धर्म कहां? यद्यपि वे देना नहीं चाहते फिर भी यज्ञकारी यजमानों से अर्थ ग्रहण करने के अभिलाषी और अर्थ के लिए जीवन देने को प्रस्तुत ब्राह्मण निष्परिग्रही कैसे हो सकते हैं ? सामान्य से अपराध के लिए भी जो क्षण भर में श्राप देने को तैयार रहते हैं ऐसे लौकिक साधुओं में क्षमा लेशमात्र भी नहीं होती। जिनका हृदय जाति आदि के मद से परिपूर्ण है ऐसे ब्राह्मणों के चार आश्रमों में से किसी एक आश्रम में