Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 178
________________ [१६९ पुत्र महा अहङ्कारी हैं । वे मिलित वायु और अग्नि की तरह आपका आदेश नहीं मानते हैं। उनमें शस्त्र-ज्ञान और विद्या एक साथ अवस्थित है। उनका बाहुबल अलङ्कार तुल्य है। आपकी तुलना में उनकी शक्ति का बढ़ना उचित नहीं है। महाराज, मैं तो मात्र गुप्तचर हूं, जो कुछ करणीय है वह आप करें।' (श्लोक २१७-२२०) यह सुनकर तारक ऋद्ध हो उठा। उसके नेत्रों के तारे घमने लगे। उसने अपने अनन्य शक्तिशाली सेनापति को आदेश दिया'पूर्ण ध्यान से युद्ध की तैयारी करो और आज ही युद्ध प्रयाण की भेरी बजवाओ एवं सामन्तों को सूचना दो। तुम जाकर दुष्ट राजा ब्रह्मा की पुत्रों सहित हत्या कर दो। दुष्ट क्षत की तरह शत्रु की उपेक्षा करने पर वह विषोत्पादक हो जाता है ।' (श्लोक २२१-२२२) राजा की यह आज्ञा सुनकर मंत्री बोले-'महाराज भलीभाँति पहले सोच विचार करें । राजा ब्रह्मा आपका सामन्त और अनुगत है। बिना कारण उस पर आक्रमण करना उचित नहीं है। इससे अन्य सामन्त राजाओं के मन में भी अविश्वास उत्पन्न हो जाएगा। जिनके मन में अविश्वास उत्पन्न हो जाता है वे विश्वास नहीं रख सकते। फिर बिना विश्वास के वे आपकी आज्ञा का पालन कैसे करेंगे? इस प्रकार आपका प्रभुत्व ही कहाँ रह पाएगा? अतः उन पर कोई आरोप लगाना होगा। पुत्रों के अहङ्कार से अहङ्कारी राजा पर आरोप लगाना खूब सहज है । आप उसके यहां दूत भेज कर दण्ड स्वरूप उसके प्राणों से प्रिय श्रेष्ठ हस्ती, अश्व और रत्नादि की मांग करें। यदि वह नहीं दे तो इस बहाने उसकी हत्या की जा सकती है। अपराधी को सजा देने में लोग आपकी निन्दा नहीं नहीं करेंगे । यदि आप जो कुछ चाहते हैं वे सब वह दे दें तब दूसरा बहाना खोजना होगा । किसी भी कारण से कोई भी व्यक्ति अपराधी हो सकता है।' (श्लोक २२३-२३०) __ मन्त्री का कथन युक्तियुक्त होने के कारण राजा ने उसे स्वीकार कर लिया और तत्काल गुप्त आदेश देकर गुप्तचर को द्वारिका भेजा। दूत शीघ्र द्वारिका पहुंचा और राजा ब्रह्मा, द्विपृष्ठ और विजय सहित जहां बैठे थे वहां उपस्थित हुआ। ब्रह्मा ने दूत को आदर सहित अपने पास बैठाया और बहुत देर तक उससे

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