Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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पर भी उभय पक्ष के सैनिकों ने किसी प्रकार अस्त्र धारण किए। मृत्यु का आहार प्रस्तुत करने वाली पाकशाला की तरह महाहत्या के कारण रूप दोनों ने परस्पर आक्रमण किए। दोनों पक्षों के लक्षलक्ष छत्रधारी निहत हुए। सैनिकों की संख्या तो देनी ही असम्भव थी। युद्ध क्षेत्र रक्त रूप जल और छत्र रूप कमल से यम की तरह क्रीड़ावापी में परिणत हो गया था।
(श्लोक २४७.२५१) तब द्विपृष्ठ ने जैत्र नामक रथ पर चढ़कर पाञ्चजन्य शङ्क बजाया जिसकी ध्वनि युद्ध-विजय के मन्त्रोच्चार-सी थी। सिंह के गर्जन से जैसे हरिण काँप जाता है, वज्रपात शब्द से हंस, वैसे ही तीव्र शङ्ख ध्वनि सुनकर तारक की सेना कांप गई। अपनी सेना को त्रस्त होते देखकर उन्हें लज्जित और पीछे अवस्थान करने को कहकर तारक स्वयं रथ पर आरोहण कर द्विपृष्ठ के सम्मुख आया । हलधर बलराम सहित वासुदेव ने इन्द्र जैसे अपना ऋजुरोहित धनुष कम्पित करते हैं उसी प्रकार सारंग धनुष को कम्पायमान किया । तारक भी स्व-धनुष को कम्पित कर तूणीर से तीर निकाल कर यम से दृढ़ हस्त-से उस तीर को प्रत्यंचा पर चढ़ाया। तारक ने तीर निक्षेप किया; किन्तु वासुदेव ने मध्य पथ पर ही उसे काट दिया। इस प्रकार तीर निक्षेप और तीर काट देना यही युद्ध दोनों में बहुत देर तक चला। गदा, मुदगर, शूल जैसे जो भी अस्त्र तारक निक्षेप करता वासुदेव उसके विपरीत अस्त्र से उसे विनष्ट कर देते।
(श्लोक २५२-२५८) तब तारक ने युद्ध रूपी समुद्र के क्रूर मकरतुल्य चक्र को धारण किया। क्रोध और आश्चर्य से स्फुरित ओष्ठों से वह द्विपृष्ठ से बोला—'यद्यपि तू दुराचारी है फिर भी तुझ पर दया कर मैं तुझे मारूंगा नहीं कारण तू मेरा आज्ञाकारी सामन्त का पुत्र है और बालक है।'
(श्लोक २५९-२६०) विजय के अनुज द्विपृष्ठ ने भी हँसते हुए उत्तर दिया-'मुझ वासुदेव पर करुणा करते तुझे लज्जा नहीं आती। यद्यपि तू मेरा शत्रु है फिर भी मैं तुझे क्षमा करता हूं। यदि तुम चक्र पर निर्भर हो तो चक्र चलाओ और अपना कार्य शेष कर तुम निर्विघ्न चले जाओ। जो वार्द्धक्य के कारण मृत्यु के सन्निकट है उसे कौन मारेगा।'
(श्लोक २६१-२६३)