Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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काल ही आ गया तब त्रिपृष्ठ ने अपना रथ अश्वग्रीव के रथ के पास ले जाने को कहा। स्नेह-रज्जु से बँधे महारथी अचलकुमार भी अपना रथ त्रिपृष्ठकुमार के पास ले गए। क्रोध से लाल नेत्र किए अश्वग्रीव मानो उनके रक्तपान का प्यासा हो इस भाँति उन्हें देख कर बोला-'तुममें से किसने चण्डवेग पर आक्रमण किया था ?'
__ (श्लोक ६५८-६६१) अश्वग्रीव का कथन सुनकर त्रिपृष्ठकुमार हँसते हुए बोलेमैं त्रिपृष्ठ हूं-मैंने ही तुम्हारे दूत पर आक्रमण किया था । पश्चिम सीमान्त स्थित सिंह को भी मैंने मारा था और स्वयंप्रभा से विवाह भी मैंने ही किया है । मैं तुम्हें अपना प्रभु नहीं मानता । मैं चिरकाल से तुम्हारी उपेक्षा करता आ रहा हूं। ये हैं मेरे अग्रज अचलकुमार जो कि शौर्य में इन्द्र तुल्य हैं। इनके सम्मुख खड़ा हो सके ऐसा मैंने त्रिलोक में भी किसी को नहीं देखा है-तुम तो हो ही क्या ? यदि तुम्हें लगे कि सैन्य-संहार की आवश्यकता नहीं है तो अस्त्र लेकर मेरे सम्मुख आओ। तुम मेरे युद्ध अतिथि हो। आओ, द्वन्द्वयुद्ध कर तुम्हारी युद्ध की इच्छा शान्त कर दूं। सैन्य दर्शक के रूप में मात्र यह देखे।
(श्लोक ६६२-६७०) अश्वग्रीव और अचलकुमार के यह बात स्वीकार कर लेने पर सैन्यदल को युद्ध से विरत होने का आदेश दिया गया। तब अश्वग्रीव ने एक हाथ धनुष के मध्य रखकर अन्य हाथ से प्रत्यंचा खींची। उस समय धनुष यमराज की कुटिल भौंह-सा लगने लगा। तदुपरान्त रणदेवी को आनन्दित करने के लिए मानो वह वीणा बजा रहा है इस भाँति प्रत्यंचा को झंकृत किया। रात्रि में धमकेतु का उदय जैसे ध्वंस की सूचना देता है उस प्रकार त्रिपृष्ठकुमार ने भी विनाशसूचक अपने धनुष की प्रत्यंचा को झंकृत किया । वज्रनाद-से उस शब्द ने मृत्यु आह्वानकारी मन्त्र की तरह शत्र-सेना के हृदय को भंग कर डाला। अब अश्वग्रीव ने गह्वर से जिस प्रकार खींचकर सांप निकाला जाता है वैसे ही तूणीर से एक तीर निकाल कर धनुष पर रोपा और प्रत्यंचा को कर्ण तक खींचा, तदुपरान्त ज्वलन्त आलोक शिखा की तरह वह तीर जो कि मृत्यु का आह्वान कर रहा था मानो वह पृथ्वी का अन्त कर देने वाला अग्नि-पिण्ड हो इस भाँति उसे निक्षेप किया। महाबलशाली त्रिपृष्ठकुमार ने उस