Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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को कुछ देर में ही नींद आ गई किन्तु शय्यापालक ने गाना सुनने की इच्छा से गाना बन्द नहीं करवाया। इन्द्रियों के विषय में आसक्त होने से स्वामी की आज्ञा अवहेलित होती है। रात्रि के शेष याम में त्रिपृष्ठकुमार जाग्रत हुए तो पूर्व की ही भाँति उन्हें सुमधुर संगीत सुनाई पड़ा।
(श्लोक ८७४.८७६) _ 'उनका गाना बन्द क्यों नहीं करवाया ? इतनी देर तक वे निश्चय ही क्लान्त हो गए होंगे ? त्रिपृष्ठ द्वारा इस प्रकार पूछने पर शय्यापालक ने उत्तर दिया- 'देव, उनके संगीत पर मैं इतना मुग्ध हो गया था कि उन्हें गाना बन्द करने को नहीं कहा। मैं प्रभु का आदेश भूल गया।
(श्लोक ८७७-८७८) ___ यह सुनते ही त्रिपृष्ठकुमार ने क्रुद्ध होकर शय्यापालक को तत्क्षण बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया। दूसरे दिन सुबह सूर्य जिस प्रकार पूर्व दिशा को शोभित करता है उसी प्रकार उन्होंने जब राज सभा को सुशोभित किया तो वह रात्रि वाली घटना स्मरण हो आई। उन्होंने उसी क्षण शय्यापालक को बुलवाया और रक्षकों को आदेश दिया इस संगीतप्रिय शय्यापालक के कानों में गर्म-गर्म शीशा भर दो। इसके कान अपराधी हैं। वे लोग शय्यापालक को एकांत में ले गए और उसके कान में गर्म-गर्म शीशा भर दिया। राजाज्ञा क्रूर होने पर भी दुर्लघ्य होती है। भयंकर यन्त्रणा से उस शय्यापालक की मृत्यु हो गई और त्रिपृष्ठकुमार ने अशुभतम कर्म का इस भाँति बन्धन कर लिया।
(श्लोक ८७९-८८३) नित्य विषयासक्त, राज्य मूर्छा में लीन, बाहुबल के गर्व में जगत को तृण समान समझने वाले, हिंसा में निःशंक, महारम्य और महापरिग्रही त्रिपृष्ठ क्रूर कर्मों के कारण सम्यक्त्व रूप रत्न नष्ट कर नरक का आयुष्य बांधा और ८४,०००,०० वर्ष की आयु पूर्ण कर सातवें नरक में उत्पन्न हुए। वहाँ अप्रतिष्ठान नामक नरक में ५०० धनुष दीर्घकाययुक्त तैंतीस सागरोपम की आयु लिए स्वकर्मों का फल भोग करेंगे। इन्होंने २५००० वर्ष कुमारावस्था में, २५००० वर्ष मांडलिक राजा के रूप में, १००० वर्ष दिग्विजय में और ८३,४९,००० वर्ष वासुदेव (अर्द्धचक्री) के रूप में कुल मिलाकर ८४ लाख का पूर्ण आयु भोगा। त्रिपृष्ठ की मृत्यु से सूर्य जिस प्रकार राहु से ग्रस्त होता है उसी प्रकार अचल महान शोक से अभिभूत हो