Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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_ 'महाराज, आप तो जानते ही हैं-भरतक्षेत्र के दक्षिणार्द्ध में श्री की निवास रूपा साकेत नामक एक नगरी है। वहाँ के राजा का नाम है पर्वत । वे दीर्घबाहु और भरत के सेनापति की तरह सैन्यवाहिनी के अधिकर्ता हैं। उनके गुणमंजरी नामक एक गणिका है। रूप में वह रतिपति के वैभवतुल्य है एवं उर्वशी और रम्भा का भी तिरस्कार करने वाली है। मुझे लगता है उसके मुख चन्द्र के निर्माण के पश्चात् जो परमाण अवशिष्ट रहे उन्हीं परमाणओं से विधाता ने पूर्णचन्द्र का निर्माण किया है। उनके आकर्ण विस्तृत नेत्र मानो पूछ रहे हैं मुझसे अधिक सौन्दर्य की बात क्या तुम लोगों ने कहीं सूनी है ? उसके वक्षस्थल के स्तन-कुम्भ इतने पूर्ण हैं कि वह अनन्य है । ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिससे उसकी तुलना की जा सके। उसका कटिदेश इतना क्षीण है कि मानो एक साथ रहने के कारण सखा भाव से उसने अपनी विस्तृति वक्ष देश को दे डाली है। उसके हस्त और पदतल कमल की तरह कोमल हैं और उसके रक्तवर्ण अशोक पल्लव को भी क्षिण्ण करता है। गाने में वह कोकिल कण्ठी है, नृत्य में स्वयं उर्वशी और वीणा-वादन में मानो तुम्बरु की सहोदरा है। महाराज, वह स्त्री-रत्न तो एक मात्र आपके ही योग्य है। स्वर्ण और रत्न की तरह आप दोनों का मिलन हो । लवणहीन खाद्य की तरह, चक्षुहीन मुख की तरह, चन्द्रमाहीन रात्रि की तरह गुणसुन्दरी हीन इस राज्य से आपको प्रयोजन ही क्या है ?'
(श्लोक १३९-१४९) उसकी बात सुनकर उन्होंने गुणमंजरी की याचनाकर राजा पर्वत के पास एक मन्त्री को दूत रूप में भेजा। मन्त्री मानो आकाश में उड़ रहा है ऐसे अश्वतरी युक्त यान से शीघ्र साकेतपुर पहुंचा और राजा पर्वत से बोला
(श्लोक १५०-१५१) 'राजा विन्ध्यशक्ति आप-से हैं और आप विन्ध्यशक्ति-से हैं । आपका सक्य महासमुद्र-सा है। दो शरीर होते हुए भी आप एक आत्मा हैं। जो कुछ आपका है वह उनका है, जो उनका है वह आपका है। आपकी गुणमंजरी नामक गणिका की ख्याति उनके कानों तक पहुंची है। कौतुहल से प्रेरित होकर उन्होंने आपको आदेश दिया है कि आप उसे उनके पास भेज दें। आप जैसे बलशाली और सहोदर तुल्य महाराज विन्ध्यशक्ति को आप गुणमंजरी