Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१५७ जम्बूद्वीप के दक्षिण भरतार्द्ध में पृथ्वी की चम्पक माला-सी चम्पा नामक एक नगरी थी। रत्न निर्मित मन्दिरों की दीवारों पर प्रतिबिम्ब पड़ने से वहाँ के मनुष्य वैक्रिय लब्धि सम्पन्न हों ऐसे लगते थे। प्रति गह की क्रीड़ावापी रात्रि के समय सोपानों पर जड़ित चन्द्रकान्त मणि निःसृत जल में अपने आप पूर्ण हो उठती थी। यहाँ के गृहों से निर्गत धूपवत्तिका के धूपवल्ली से वहाँ के गृह सर्प पूर्ण पाताल लोक के गह-से लगते थे। क्रीड़ारत नगर-नारियों से क्रीड़ावापियाँ अप्सरा परिपूर्ण क्षीर-समुद्र-सी लगती थीं। स्त्रियों द्वारा गाए षडज राग के गीत षडज कौशिकी मयूर के केकारव को भी पराभूत कर देतीं। ताम्बूल करंकवाहिनियों के हाथ में पान और सुपारी लेकर आने-जाने से लगता वे मानो शुक पक्षियों को हाथ में लेकर शिक्षा दे रही हों।
(श्लोक १३-१९) इक्ष्वाकुवंशीय वसुपूज्य वहाँ के राजा थे। वे वासव की तरह पराक्रमी और वसु (सूर्य) की तरह लावण्यशाली थे। मेघ जैसे पृथ्वी को वारि द्वारा सिंचित करता है उसी प्रकार वे भेरी शब्द से भिखारियों को एकत्र कर अर्थदान से परितुष्ट करते । उनकी अगणित सैन्य आक्रमण के लिए नहीं कौतुक के लिए पृथ्वी पर परिभ्रमण करती; कारण उनके प्रताप से ही शत्रु निजित हो गए थे। राजा रूप में उन्होंने शासन के उत्स होने से दुवृत्तों को इस प्रकार दमन कर दिया था जिसके कारण 'दास' केवल अभिधानगत शब्द होकर रह गया था अर्थात् लोगों में कोई दास था ही नहीं। जो धर्म पालन करते उनके प्रति श्रद्धाशील वे जिनवाणी को इस प्रकार हृदय में धारण करते मानो उन्होंने श्रीवत्स चिह्न हृदय में धारण कर रखा हो।
(श्लोक २०-२४) उनकी प्रधान महिषी का नाम जया था। वे आनन्द रूप प्रेम और सौन्दर्य की प्रतिमा और कुल रूपी सरिता की हंसिनी-सी थीं। जाह्नवी जैसे पूर्व समुद्र में प्रवेश करती है वैसे ही जाह्नवी-सी धीर और मन्थरगमना जया भी वसुपूज्य के हृदय में प्रवेश कर गई थी। भक्त के हृदय में जैसे भगवान् निवास करते हैं उसी प्रकार रानी के स्फटिक जैसे हृदय में राजा वसुपूज्य सतत वास करते थे। रूपलावण्य और सौन्दर्य से परस्पर एक दूसरे को आनन्दित कर उनका समय सुख से व्यतीत होता था।
(श्लोक २५-२८)