Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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से गरुड़ जैसे स्व-ओष्ठों से सांप को टुकड़ा-टुकड़ा कर फेंक देता है वैसे ही टकड़े-टुकड़े कर फेंक दिया। तब अश्वग्रीव ने पर्वत-सी कठोर, सख्त और वज्राकृति मानो यम का दण्ड हो, तक्षक की बहन हो ऐसो एक गदा त्रिपृष्ठकुमार पर फेंकी। त्रिपृष्ठकुमार ने उस गदा को अपनी गदा से मिट्टी के ढेले की तरह तोड़कर जमोन पर गिरा दिया।
(श्लोक ६९२-६९५) इस प्रकार जब उसके समस्त अस्त्र टटकर चर-चर हो गए। तब वह निराश हो उठा। विपद में जैसे भाई याद आता है उसी प्रकार उसे नागास्त्र याद हो आया। अश्वग्रीव ने जब उस नागास्त्र को धनुष पर चढ़ाकर निक्षेप किया तब शत-शत सर्प जैसे सपेरे की टोकरी से बाहर निकलते हैं उसी प्रकार निकलने लगे। हवा में फूत्कार करते हुए, जमीन पर चलते हुए उन्होंने मध्य लोक को पाताल लोक में परिवर्तित कर डाला। कर, दीर्घ, काले, उन फूत्कार करते साँपों से आकाश में धूमकेतु के उदय से भी सहस्रगुणा अधिक संत्रास चारों ओर व्याप्त हो गया। मृत्यु के गुप्तचर से उन्हें आकाश में संचरण करते देखकर खेचर रमणियाँ भयभीत होकर बहुत दूर भाग गई । त्रिपृष्ठ की सैन्य के मध्य भी आतंक फैल गया। ऐसी अवस्था प्रभु की शक्ति से अज्ञान या प्रभु की शक्ति पर अति विश्वास से ही होती है।
(श्लोक ६९६-७०१) तब त्रिपृष्ठकुमार ने धनुष गरुड़वाण चढ़ाकर निक्षेप किया। वाण के मुख से सौ-सौ गरुड़ निकलने लगे। उनके पंखों के संचालन से आकाश जैसे स्वर्ण छत्र से आवृत हो गया। उनके लिए वे सर्प कदली तुल्य ही थे। गरुड़ों के डैनों की आवाज से सर्प उसी प्रकार दूर हो गए जैसे सूर्योदय होते ही अन्धकार दूर हो जाता है। नागास्त्र को भी व्यर्थ होते देखकर अश्वग्रीव ने अव्यर्थ अग्निवाण को स्मरण किया। उस अग्निवाण को धनुष पर चढ़ाकर त्रिपृष्ठ पर फेंका । उस वाण ने प्रज्ज्वलित अग्निशिखा से आकाश को उल्कामय कर डाला। वड़वानल से जैसे समुद्रीय प्राणी व्याकुल हो जाते हैं वैसे ही त्रिपृष्ठकुमार की सेना चारों ओर से होती हुई अग्निवर्षा से व्याकुल हो उठी। अश्वग्रीव की सेना इससे उत्तजित हो उठी। कोई हँसने लगा, कोई चक्कर खाने लगा, कोई कूदा, कोई नाचा, कोई गाने लगा, कोई ताली बजाने लगा। यह देखकर कोधित हुए