Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
१४८]
लगता था मानो शत-शत इन्द्रधनुष उदित हुए हैं। धरती की धूल निवारण के लिए जल का छिड़काव किया था। मानो अभी-अभी वर्षा हई है। उज्ज्वल कलश शोभित उच्च वेदी समूह स्वर्ग के विमान की तरह शोभा पा रहे थे। मंगल गानों से लगता था जैसे प्रतिगृह में विवाहोत्सव अनुष्ठित हो रहा है। असंख्य लोगों के एकत्र होने से लगता था पृथ्वी के समस्त लोग वहाँ एकत्र हो गए हैं। तब राजा प्रजापति, ज्वलनजटी, अचलकुमार और अन्य राजाओं ने त्रिपृष्ठकुमार को अर्द्धचक्री रूप में अभिषिक्त किया।
(श्लोक ७७२-७७६) भगवान श्रेयांसनाथ दो मास तक छद्मस्थ अवस्था में विचरण कर सहस्राम्र उद्यान में आकर उपस्थित हुए। वहाँ अशोक वृक्ष तले जब कि वे द्वितीय शैलेशीकरण ध्यान में स्थित थे उनके चार घाती कर्म-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय जिस प्रकार अग्नि में मोम गल जाता है उसी प्रकार गल गए। माघ कृष्णा अमावस्या को चन्द्र जब श्रवण नक्षत्र में था तब दो दिनों के उपवास के पश्चात् प्रभु को केवल-ज्ञान उत्पन्न हुआ।
(श्लोक ७७७-७८०) देवता निर्मित समवसरण में बैठकर अलौकिक शक्तिधर अर्हत् श्रेयांसनाथ स्वामी ने उपदेश दिया। उस उपदेश से अनेकों को सम्यक् ज्ञान प्राप्त हुआ। किसी ने साधुव्रत ग्रहण किया, किसी ने श्रावक व्रत। आप गोशुभ आदि छियत्तर गणधर हुए। उन्होंने प्रभु से त्रिपदी सुनकर द्वादशांगी की रचना की।
__(श्लोक ७८१-७८३) उनके संघ में ईश्वर नामक श्वेतवर्ण त्रिनयन वृषभ-वाहन यक्ष उत्पन्न हुए। उनके दाहिने हाथों में एक में विजोरा नींबू और दूसरे में गदा थी। दोनों बाएँ हाथों में से एक में नेवला और दूसरे में अक्षमाला थी। वे भगवान श्रेयांसनाथ के शासन देव हए । इसी प्रकार गौरवर्णा सिंहवाहना मानवी यक्षिणी उत्पन्न हुई। उनके दाहिने ओर के एक हाथ में हथौड़ी और दूसरा वरद मुद्रा में था। बायीं ओर के हाथों में एक में वज्र और दूसरे में अंकुश था। ये भगवान की शासन देवी बनीं।
(श्लोक ७८४-७८७) शासन देव-देवी सहित भगवान श्रेयांसनाथ प्रव्रजन करते