Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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आक्रमण के सन्मुख कैसे खड़ा रह सकता है ? यह देख अचलकुमार, त्रिपृष्ठकुमार, ज्वलनजटी अपनी विद्याधर सेना सहित रथ पर बैठ कर आकाश में उड़ गए। दोनों पक्षों के विद्याधरगण मानो वे अपने गुरु के सम्मुख अपनी विद्या का प्रदर्शन कर रहे हों इस प्रकार घोर युद्ध करने लगे । पृथ्वी पर भी उभय पक्ष के सैन्यदल जिस प्रकार अरण्य में एक हस्तीदल अन्य हस्तीदल पर क्रुद्ध होकर युद्ध करता है उसी प्रकार युद्ध करने लगे । आकाशचारी विद्याधरों के परस्पर के अस्त्राघात जनित रक्त स्राव के कारण आकाश से प्रलय सूचक रक्तवृष्टि होने लगी । ( श्लोक ६३९-६४६ )
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कोई दण्ड लेकर एक दूसरे पर ऐसी द्रुतगति से आघात करने लगा । लगता था एक ही दण्ड लेकर क्रीड़ा नैपुण्य दिखाया जा रहा है । उस दण्डाघात से आकाश गूँज रहा था । जिस प्रकार भेरी को लकड़ी से पीटा जाता है उसी प्रकार कोई अपने प्रतिपक्षी को तलवार की मूठ से पीट रहा था । कोई अन्य की जय को सहने में असमर्थ होकर परस्पर सन्नद्ध बना अपनी ढाल को करताल की तरह कम्पित कर रहा था । कोई आकाश को केश की तरह द्विखण्डित करने को बरछी निक्षेप कर रहा था जो कि वज्रनाद के साथ विद्युत्-चमक का भ्रम उत्पन्न कर रही थी । कोई क्रूर सर्प की छोटा भाला निक्षेप कर रहा था । दोनों सैन्यदल इस प्रकार अस्त्रों को ऊर्ध्व और अधोलोक में निक्षेप कर रहे थे, लगता था पृथ्वी और आकाश अस्त्रमय हो गए । किसी के हाथ में सद्य काटा शत्रु-मुण्ड था । देखकर लगता था मानो वह समराङ्गण का विशेष रक्षक हो । स्कन्धहीन देह पर गिरे हस्ती - मुख के कारण कोई गणेश-सा लग रहा था तो कोई अश्व - मुख के कारण किन्नर - सा लग रहा था । कोई तत्काल कटा मस्तक कुछ देर के लिए कमर बन्ध में अटक जाने के कारण ऐसा लग रहा था मानो उसका माथा नाभि से निकला है । किसी की मुण्डहीन देह इस प्रकार घूम रही थी मानो रणचण्डी के स्वयंवर में आनन्दित होकर प्रेत-नृत्य कर रहे हों । किसी का कटा हुआ मुण्ड जमीन पर गिरते समय गुनगुना रहा था मानो धड़ से जुड़ने के लिए मन्त्र पाठ कर रहा हो ।
( श्लोक ६४७-६५७ ) जब युद्ध ने इस प्रकार भयंकर रूप धारण कर मानो प्रलय