Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१३८] ने बाघ, चीता, वृष, सर्प, शूकर आदि हिंस्र पशु का आकार धारण कर लिया जैसे कि राक्षस पशु रूप धारण कर लेते हैं। भीषण चीत्कार करते हुए जैसे मृत्यु का आह्वान कर रहे हों इस प्रकार उन्होंने त्रिपृष्ठकुमार के सैन्यदल पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण से विमूढ़ और हतोत्साहित होकर त्रिपृष्ठ की सेना सोचने लगी-क्या हम लोग भूलवश भूतों की नगरी में आ गए हैं ? क्या यह राक्षसों का देश है ? या अश्वग्रीव के आदेश से भयंकर यह राक्षस और पशुवाहिनी हम से युद्ध करने आई हैं ? एक औरत के लिए हमारा विनाश हो रहा है। अब तो त्रिपृष्ठकुमार के जयी होने पर ही हमारा साहस रह पाएगा।
(श्लोक' ५९५-६१५) ऐसा सोचकर त्रिपृष्ठकुमार की सेना पीछे लौटने लगी। तब ज्वलनजटी आगे आया और त्रिपृष्ठकुमार को बोला-'यह सब विद्याधरों का इन्द्रजाल है। इसमें वास्तविकता कुछ नहीं है । सांप किस रास्ते से गया यह तो साँप ही बता सकता है। इससे उन अल्प बुद्धिवालों की शक्तिहीनता ही प्रदर्शित हो रही है। जो शक्तिशाली है वह क्यों बालक को भय दिखाने की तरह इन सबों की सृष्टि करेगा ? अतः हे वीर उठो, रथ पर चढ़ो और शत्रुओं को मानरूपी हस्तपृष्ठ से विच्युत कर धरती पर पटक दो। तुम्हारे रथारूढ़ और युद्धरत रहते हुए और आकाश में सहस्रमाली सूर्य के अवस्थान करते हुए किसका वैभव विस्तृत हो सकता है ?' (श्लोक ६१६-६२०)
___ ज्वलनजटी का यह कथन सुनकर महारथी त्रिपृष्ठ वृहद् रथ पर चढ़कर स्व-सैन्य को उत्साहित करने लगे। दीर्घबाहु बलराम भी अपने रथ पर चढ़े। वे किसी भी समय अपने छोटे भाई को अकेला नहीं छोड़ते थे। युद्ध के समय तो बिल्कुल नहीं । ज्वलनजटी और उसके विद्याधर सिंह जैसे पर्वत-शिखर पर चढ़ता है उसी प्रकार अपने-अपने रथ पर जा चढ़े। उनके पुण्योदय से ही मानो देवगण आकृष्ट होकर वहाँ आए और त्रिपृष्ठकुमार को शारंग नामक दिव्य-धनुष, कौमुदी गदा, पाञ्चजन्य नामक शंख, कौस्तुभ मणि, नन्दक नामक खड्ग और वनमाला नामक जयमाल्य अर्पण किए। उन्होंने अचलकुमार को भी संवर्तक नामक हल, सौमन्द नामक मूशल और चन्द्रिका नामक गदा दी। दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति होते देखकर अन्य योद्धा भी उत्साहित होकर संगठित रूप से