Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कोई प्रत्यंचा पर तीर रखकर प्रत्यंचा को शब्दित करने लगा । कोई मुद्गर घुमाने लगा, कोई गदा, कोई त्रिशूल । इस प्रकार अश्वग्रीव की सेना लौहयष्टि लेकर आक्रमण के लिए अति आग्रहपूर्वक कोई अाकाश-पथ से कोई भू-पथ से पोतनपुर पहुंच गई ।
( श्लोक ५२४- ५३० ) दूरागत कोलाहल सुनकर विमूढ़ प्रजापति ने पूछा - 'यह कैसा शब्द है ? प्रत्युत्तर में ज्वलनजटी ने कहा- 'निश्चय ही अश्वग्रीव प्रेरित सैन्यदल है । आएँ वे । मैं युद्ध के लिए उद्ग्रीव हूं । मेरे पहले अचल और त्रिपृष्ठ युद्ध न करें ।' उसने सैन्य सजाकर युद्ध के लिए यात्रा की । क्रुद्ध अश्वग्रीव की सेना ने उस पर चारों ओर से आक्रमण किया । कारण, मित्र जब शत्रु बन जाते हैं तो उन पर अधिक क्रोध होता है । नियम को जैसे अपवाद द्वारा सहज किया जाता है उसी प्रकार ज्वलनजटी ने उनके अस्त्रों को अस्त्र द्वारा निर्विचार से हल्का कर डाला । हस्तियों पर जैसे अप्रत्याशित मेघ ओलों की वृष्टि द्वारा आक्रमण करता है वैसे ही उन्होंने उन्हें तीक्ष्ण वाण - वृष्टि द्वारा आक्रमण कर डाला । सपेरा जैसे सांप को दमित करता है वैसे ही ज्वलनजटी ने विद्या और अस्त्र बल से उनके दीर्घकालीन गर्व को चूर कर डाला । ( श्लोक ५३१-५३७) ज्वलनजटी ने उनसे कहा - 'दुर्वृत्त तुम लोग शीघ्र इस स्थान का परित्याग करो । ओ नगण्य कीट, प्रभुहीन तुम्हारी कौन हत्या करेगा ? तुम्हारे प्रभु अश्वग्रीव को लेकर रथावर्त पर्वत पर आओ, वहीं फिर मिलेंगे ।' इस प्रकार घृण्यभाव से सम्बोधित होकर अश्वग्रीव की सेना त्रस्त बनी प्राण रक्षा के लिए काक की तरह अदृश्य हो गई । लज्जा से खिन्न मुख मानो दीपक की कालिमा उनके मुख में मसल दी हो इस प्रकार उन्होंने जाकर सारी बात अश्वग्रीव से निवेदित कर दी। जैसे हवि निक्षेप से अग्नि प्रज्वलित हो उठती है उसी प्रकार महाबल सम्पन्न अश्वग्रीव प्रज्वलित हो उठा । क्रोध से आयत और रक्तवर्ण नेत्रों से जैसे राक्षस की तरह भयानक बने अश्वग्रीव ने अपने सामन्त, मन्त्री, सेनापति को आदेश दिया तुम सब अपनी समस्त सैन्यवाहिनी लेकर अग्रसर हो, धूम्र जैसे मशक को नष्ट कर देता है मैं भी उसी प्रकार प्रजापति को, त्रिपृष्ठ और अचल को एवं ज्वलनजटी को अभी जाकर युद्ध में नष्ट