Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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वे तीन ज्ञान के धारक थे फिर भी उन्होंने शिशु सुलभ सरलता धारण कर रखी थी कारण उषाकाल में सूर्य भी ताप - विकीर्ण नहीं करता । बालक रूपी देव, असुर और मनुष्यों के साथ क्रीड़ा कर रथ से हस्तीपृष्ठ पर आरोहण करने की भाँति यौवन को प्राप्त किया ।
( श्लोक ८५-८९ )
I
अस्सी धनुष दीर्घ प्रभु यद्यपि वैरागी थे फिर भी पिता की इच्छा से विवाह किया । जन्म से इक्कीस लाख वर्ष अतिक्रान्त होने पर उन्होंने पिता के अनुरोध से राज्य-भार ग्रहण किया । मंगलनिधान श्रेयांसनाथ ने अक्षुण्ण प्रताप से बयालीस लाख वर्ष तक पृथ्वी पर शासन किया । ( श्लोक ९०-९१) संसार- विरक्त होकर जब उन्होंने दीक्षा लेने का विचार किया तो लौकान्तिक देव शुभ शकुन की तरह प्रभु को दीक्षा के लिए उत्साहित करने आए । प्रभु ने एक वर्ष तक शक के आदेश से कुबेर द्वारा प्रेरित और जृम्भक देवों द्वारा लाए धन को दान किया । वर्ष के अन्त में इन्द्र आए और प्रभु को दीक्षा पूर्व का अभिषेक स्नान करवाया मानो वे कर्म रूपी शत्रु को जय करने के लिए यात्रा कर रहे हों । देवों ने उनकी देह पर दिव्य सुगन्धित द्रव्य का विलेपन कर उन्हें रत्नालंकारों से भूषित किया । मंगल ही ने मानो रूप धारण किया है ऐसा शुभ्र देवदूष्य वस्त्र धारण कर वे भृत्यरूपी शक के कन्धों पर हाथ रखकर और छत्र - चामरधारी अन्यान्य इन्द्रों द्वारा परिवृत होकर रत्नखचित विमल - प्रभा शिविका में चढ़े। फिर देव और मनुष्यों से घिरे सहस्राम्रवन उद्यान पहुंचे । वहाँ शिविका से उतर कर समस्त अलंकारों को खोल डाला और स्कन्ध पर इन्द्र द्वारा प्रदत्त देवदूष्य वस्त्र रखकर फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी को चन्द्र के साथ श्रवण नक्षत्र का योग आने पर दो दिनों के उपवास के पश्चात, प्रभु केश उत्पाटित कर दीक्षित हुए। शक उन्हीं केशों को अपने उत्तरीय के प्रान्त पर धारण कर हवा की भाँति तीव्र गति से मुहूर्त मात्र में क्षीर समुद्र में डालकर लौट आए । हस्त संचालन द्वारा इन्द्र ने जब कोलाहल शान्त कर दिया तब प्रभु ने जो सबको अभय दान करता है ऐसा सम्यक् चरित्र ग्रहण कर लिया । त्रिलोकपति के साथ एक सहस्र राजा लोग स्व-राज्य का तृणवत परित्याग कर दीक्षित हो गए । देवेन्द्र और असुरेन्द्र नंदीश्वर द्वीप में शाश्वत,