Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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बोलीं- 'महारानी ! युवराज - पुत्र विश्वभूति ही यहाँ राजकुमार है और कोई नहीं है जिससे वह तो अन्तःपुरिकाओं के साथ पुष्पकरण्डक उद्यान में आनन्द उपभोग कर रहा है और आपके पुत्र वहाँ प्रवेश के अधिकार से वंचित बने बाहर खड़े हैं ।' यह सुनकर रानी क्रोधान्वित होकर कोप भवन में जा लेटी । राजा को जब यह ज्ञात हुआ तब वे रानी के पास आए और कारण पूछा। रानी बोली, 'आपके रहते हुए विश्वभूति पुष्पकरण्डक उद्यान का राजा की तरह उपभोग कर रहा है और मेरा पुत्र भिक्षु की तरह बाहर खड़ा है ।' तब राजा ने रानी को समझाकर कहा - 'यह हमारा कुलधर्म है कि यदि एक राजपुत्र वहाँ अवस्थान करे तब दूसरा राजपुत्र उसमें प्रवेश नहीं कर सकता ।' किन्तु रानी राजा की इस बात से संतुष्ट नहीं हुई । ( श्लोक ११५ - १२३)
तब राजा ने एक छलना का आश्रय लिया और युद्ध यात्रा भेरी बजवाई | राजा ने घोषणा करवाई सामन्त पुरुषसिंह मेरा आदेश मान्य नहीं कर रहा है अतः हमें उससे युद्ध करना होगा | यह संवाद जब विश्वभूति के कानों में पहुंचा वह शीघ्र राजा के पास आया और बोला- 'मेरे रहते आप क्यों युद्ध में जाएँगे ?' इस प्रकार राजा को रोककर विश्वभूति सैन्यवाहिनी लेकर युद्ध यात्रा पर निकला । राजपुत्र आ रहे हैं जानकर सामन्त पुरुषसिंह भृत्य की तरह उनके सम्मुख उपस्थित हुआ और सम्मान सहित अपने प्रासाद में ले गया । हस्ती - अश्वादि उपहार देकर वह करबद्ध बना उनके सम्मुख उपस्थित होकर बोला- 'कुमार, मैं आपकी और क्या सेवा करू ?' विश्वभूति असमंजस में पड़ गया । अतः जिस राह से आया था उसी राह से लौट गया । भला निर्दोष सकता है ?
पर कौन क्रुद्ध हो
( श्लोक १२३-१२८ )
इस बीच विशाखनन्दी अन्तः ःपुरिकाओं को लेकर उद्यान में
चला गया ।
विश्वभूति लौट आने पर पुष्पकरण्डक उद्यान में प्रवेश करने लगा । द्वाररक्षक ने उसे रोका । बोला- 'भीतर विशाखनन्दी हैं ।' मर्यादा रूपी तट द्वारा रोका जाने पर शौर्य के समुद्र-सा विश्वभूति सोचने लगा अरण्य से हस्ती को बाहर करने के लिए जिस प्रकार छल का आश्रय लेना होता है उसी प्रकार मुझे भी उद्यान से बाहर