Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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वे करुण देव के अस्त्र रूप में परिगणित होते । चक्र जिससे उन्होंने दिक् चक्रवाल को अवदमित किया था वह उनके हाथ में शत्रु सैन्य के लिए द्वितीय मार्तण्ड-सा प्रतिभासित होता । हमारे हृदय में अवस्थान करने के कारण हमें विरोधी समझकर वे हत्या नहीं करेंगे इसलिए वे राजा लोग उनके प्रति भक्तिमान रहते । योगी जिस प्रकार परमात्मा को हृदय में धारण करते हैं उसी प्रकार वे उनको हृदय में धारण करते थे । ( श्लोक २४६-२५३) बाहुबल से उन्होंने भारतवर्ष के तीन खण्डों पर आधिपत्य विस्तार कर वैताढ्य पर्वत को सीमा निर्देशक प्रस्तर खण्ड में परिणत कर दिया था । बाहु और विद्या बल से वैताढ्य पर्वत की दोनों भुजाओं की तरह विद्याधर निवासों पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था । वे मगध, प्रभास, वरदाम देव और राजाओं द्वारा उपहार-दान से पूजित होते थे । सोलह हजार मुकुटधारी राजा उनके आदेश को मुकुट की तरह मस्तक पर धारण करते थे । दीर्घबाहु स्वयं एकछत्र राज्य का आनन्द उपभोग कर मृत्युलोक इन्द्र की तरह समय व्यतीत करते थे । ( श्लोक २५४-२५८) एक बार अश्वग्रीव जब आनन्द उपभोग कर रहे थे उसी समय आकाश में अशुभ मेघोदय का तरह उनके मन में यह विकल्प उदित हुआ :
भारतवर्ष के दक्षिण भाग में जितने भी राजा हैं, समुद्र जैसे पर्वत को निमज्जित कर देता है उसी प्रकार वे मेरे प्रताप से अवदमित हैं । हरिणयूथ के मध्य सिंह की तरह पृथ्वी पर मैं ही एकमात्र वीर हूं । अतः मेरा घातक कौन हो सकता है ? यह जानना दुष्कर है; किन्तु मैं तो जानूँगा ही । ( श्लोक २५९-२६१)
ऐसा सोचकर उन्होंने द्वार रक्षक द्वारा नैमित्तिक अश्व बिन्दु को बुलवाया । उनके द्वारा पूछे जाने पर नैमित्तिक बोला - 'राजन्, ऐसा अशुभ वाक्य उच्चारित न करें । समस्त पृथ्वी को जय करने वाले आपको यम भी क्षति नहीं पहुंचा सकता । सामान्य मनुष्य का तो कहना ही क्या ?' ( श्लोक २६२-२६४)
अश्वग्रीव बोला- 'नैमित्तिक, विनय
प्रकट न कर सत्य क्या
है वह बताओ । डरो मत। कारण जिन पर
विश्वास किया जाता
है वे चाटुकार नहीं होते।' इस भाँति बार-बार पूछने पर नैमित्तिक