Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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योग्य सुन्दर रथ और अश्वारोही सैन्य लेकर कुछ ही दिनों में पोतनपुर पहुंच गया। राजा प्रजापति उस समय देवों की तरह सर्वालंकारों से विभूषित होकर सामन्त राजा, मन्त्री अचल और त्रिपृष्ठकुमार, राजपुरोहित एवं अन्य सभासदों सहित वरुण जैसे सामुद्रिक जीवों से परिवृत होकर बैठता है उसी प्रकार राज सभा में बैठे थे । राजासभा में उस समय अविच्छिन्न भाव से संगीत का कार्यक्रम चल रहा था । विभिन्न पदन्यास भाव-भंगिमा सहित नर्तकियाँ नृत्य कर रही थीं । वाद्यों के शब्दों से आकाश गूँज रहा था । जीवनदायिनी वेणुध्वनि सह सुन्दर मधुर तालानुग ग्राम और मूर्छना समन्वित संगीत हो रहा था । उसी समय चण्डवेग बिना कुछ सूचना दिए द्वार-रक्षकों की उपेक्षा कर विद्युत प्रकाश की तरह सहसा सभा में प्रविष्ट 'हुआ । प्रभु के दूत को आकस्मिक भाव से आते देख प्रजापति सामन्त राजाओं सहित प्रभु की तरह उसकी अभ्यर्थना करने के लिए उठकर खड़े हो गए । उन्होंने दूत को समादर सहित उचित आसन पर बैठाया और प्रभु के संवाद पूछे । विद्युत झलक से जैसे शास्त्र-पाठ बन्द हो जाता है उसी प्रकार नृत्य गीत बन्द हो गया । वादक, नर्तकी और गायिकाएँ अपने-अपने आवास को लौट गई । जब प्रभु का मन अन्यत्र है तब कलाप्रदर्शन का समय कहाँ ? ( श्लोक २७९ - २८० )
त्रिपृष्ठ कुमार ने जब देखा कि उस दूत के आने से संगीत का कार्यक्रम बन्द हो गया तब उसने पास खड़े भृत्य से पूछा - 'यह असभ्य कौन है जिसे समय-असमय का भी ज्ञान नहीं है, जो कि बिना सूचना दिए राजसभा में प्रविष्ट हो गया ? मेरे पिता क्यों उसका स्वागत करने के लिए उठ खड़े हुए ? द्वार-रक्षकों ने उसे भीतर आने ही क्यों दिया ?' ( श्लोक २९१ - २९३ ) भृत्य ने प्रत्युत्तर दिया- 'यह राजाधिराज अश्वग्रीव का दूत है । दक्षिण भारत के समस्त राजा उनके दास हैं । इसीलिए आपके पिता प्रभु के दूत का प्रभु की तरह स्वागत करने को उठ खड़े हुए थे। इसीलिए द्वारपालों ने भी उसे नहीं रोका । वे जानते हैं कि उनका क्या कर्त्तव्य है । मनुष्य तो दूर प्रभु के कुत्ते की भी अवहेलना नहीं की जाती । यदि दूत खुश होगा तो अश्वग्रीव खुश होंगे। उनकी प्रसन्नता ही राज्य की प्रसन्नता है । अवहेलना से यदि इसे आहत