Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
[१२३
क्या करणीय है यह तुम नहीं जानते । एक अकृत्य तो तुम लोगों ने राज्य में दुष्ट हस्ती-सा व्यवहार किया है। अब उसी का फल सामने आ गया है। दूर विदेश में जाकर न जाने तुम लोग क्या कर बैठो और उसका परिणाम क्या हो, कौन जाने ? (श्लोक ३६०-३६२)
त्रिपृष्ठ बोला – 'पिताजी, अश्वग्रीव मूर्ख है इसीलिए हमें सिंह का भय दिखा रहा है। आप प्रसन्नतापूर्वक यहां रहें। हम लोग अश्वग्रीव के इच्छानुयायी सिंह की हत्या कर शीघ्र लौट आएँगे।'
(श्लोक १६३-३६४) ___ अन्ततः राजा को सम्मत कर वे चुनिंदा अनुचरों को लेकर सिंह वाले क्षेत्र में गए। वहां जाकर पहाड़ की तलहटी में सिंह के पराक्रम की परिचायक बहुत से सैनिकों की अस्थियां देखीं । कृषक जो कि पेड़ों की ऊपरी डालियों के मध्य बैठे थे उनसे उन्होंने पूछा'रक्षा के लिए आगत राजागण यहां किस प्रकार खेतों की रक्षा करते हैं ?' कृषकों ने उत्तर दिया-'वे अपने हस्तियों, अश्वों, रथों
और पदातिक-वाहिनियों से जल में बांध की तरह या हस्ति के लिए परिखा की तरह व्यूह-रचना कर सिंह को घेरकर गुफा में रखते । प्राणों की आशंका से वे स्वयं व्यूह के पीछे रहते । फलतः सिंह द्वारा सैनिक ही निहित होते ।' उनका यह प्रत्युत्तर सुनकर बलराम, अचल और वासूदेव त्रिपृष्ठ हँसने लगे और अपनी सेना को वहीं रखकर सिंह की गुफा की ओर चले । चारणों के गीत से जैसे राजा जागृत होते हैं उसी प्रकार उनके वज्र-से रथ के निर्घोष से सिंह जागृत हो गया। उसने सामान्य रूप से अपने नेत्र खोले जो कि यम की मशाल की तरह प्रतीत हो रहे थे। उसने अपने घंघराले केशर को हिलाया जो कि यम के चँवर से लग रहे थे। उसने गर्दन उठाकर मुह बाया जो कि नरक-द्वार-सा प्रतीत हो रहा था। फिर गर्दन संकुचित कर देखने लगा। रथ और मात्र दो मनुष्यों को देख कर उनकी उपेक्षा कर अवज्ञापूर्वक पुनः सोने की चेष्टा करने लगा।
(श्लोक ३६५-३७९) अचलकुमार बोले-'सम्पूर्ण सैन्यवाहिनी लेकर शष्यक्षेत्र की रक्षा कर और सैनिकों का भोग देकर राजाओं ने सिंह को दाम्भिक बना दिया है।'
(श्लोक ३७६) यह सुनकर नरसिंह त्रिपृष्ठ आगे जाकर मल्ल जैसे मल्ल को