Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१२७ धारण कर लिया हो ऐसी स्वयंप्रभा उन मुनियों को वन्दन करने गई। कानों के लिए अमृत तुल्य उनका उपदेश सुनकर कपड़े में लगे नीले रंग की तरह उसने दृढ़भाव से सम्यक्त्व धारण किया। उनके समक्ष उसने श्रावक धर्म अंगीकार किया। ज्ञान से पवित्र हृदय व्यक्ति कभी प्रमाद नहीं करता। मुनि द्वय विहार कर अन्यत्र चले गए।
(श्लोक ४२७-४३१) ___ एक दिन उसके चतुर्दशी का उपवास था। दूसरे दिन पारणे के लिए अर्हत् भगवान की पूजा कर स्नात्र जल पिता के पास ले गई । विद्याधर राजा ने स्नेहवश उस स्नात्रजल को सिर पर लगाया और स्वयंप्रभा को गोद में बैठाया। उसे वयः प्राप्त हुई देखकर ऋणग्रस्त व्यक्ति की तरह उसके लिए उपयुक्त पात्र की चिन्ता करने लगे। उसे सम्बद्धित कर विदा करने के बाद उन्होंने सुश्रु तादि मन्त्रियों को बुलवाया और उसके लिए उपयुक्त वर सन्धान करने को कहा।
(श्लोक ४३२-४३५) यह सुनकर सुश्रु त बोले-'रत्नपुर नगर में मयूरग्रीव और नीलांजना के पुत्र अश्वग्रीव नामक एक राजा ने विद्याबल से भरत क्षेत्र के तीन खण्ड पर अधिकार कर लिया है। वह विद्याधरों के इन्द्र की तरह राज्य करता है। वही उसके उपयुक्त वर है।'
(श्लोक ४३६-४३७) मन्त्री बहुश्रु त बोले-'अश्वग्रीव तो स्वयंप्रभा के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं है। कारण उसका यौवन बीत गया है। वैताढय पर्वत की उत्तरी श्रेणी पर बहुत से दीर्घबाह रूपवान युवा विद्याधर रहते हैं। राजन्, यदि आप योग्य सम्बन्ध चाहते हैं तो विवेचना कर उनमें से किसी के साथ राजकन्या का विवाह कर दें।'
। श्लोक ४३८-४४०) तब सुमति बोला-'राजन्, मन्त्रिवर ठीक कहते हैं। इस पर्वत की उत्तर श्रेणी के कण्ठहार की प्रथम मणि की तरह प्रभङ्करा नामक एक विचित्र नगरी है। वहां प्रभात के मेघ की तरह फलदानकारी मधवा की तरह शक्ति सम्पन्न मघवन नामक एक राजा है। उसकी पत्नी का नाम मेघमालिनी है। वह चारित्ररूपी युथीमाल्य की तरह सौरभ-सम्पन्न है । उसके विद्युत्प्रभ नामक एक पुत्र है जो कि शौर्य में समस्त राजाओं में अग्रणी और रूप में कन्दर्प