Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अचल ने उसे रोकते हुए कहा-'इस नरक के कीट को मारने से क्या लाभ होगा? शृगाल के चिल्लाने पर भी सिंह कभी उसके चपेट में आकर आघात नहीं करता। दूत होने के कारण यह अवध्य है यद्यपि उसने काम अविवेकी-सा किया है। जो-सो कह देने पर भी जैसे ब्राह्मण अवध्य है वैसे ही दूत भी अवध्य है। अतः इसके दुर्व्यवहार करने पर भी तुम क्रोध को संवरण करो। तिल का पौधा हस्तियों के आघात के योग्य नहीं होता।' (श्लोक ३०५-३१७)
___ अचल के ऐसा कहने पर हस्ती जैसे अपनी सूड़ नीची कर लेता है उसी प्रकार त्रिपृष्ठ ने भी उठाई हुई अपनी मुष्ठि को संवरण कर लिया और सैनिकों से कहा-यही वह दुष्ट है जिसने संगीतानुष्ठान में विघ्न डाला था-मैं इसे प्राणों की भिक्षा देता हूं; किन्तु इसके पास अन्य जो कुछ भी है सब छीन लो। (श्लोक ३१८-३२१)
राजकुमार के आदेश से सैनिकगण घर में घुसे कुत्ते पर घर के लोग जिस प्रकार टूट पड़ते हैं उसी प्रकार उस पर टूट पड़े और मुष्ट्याघात करते हुए उसे जमीन पर गिरा दिया। प्राणदण्ड से दण्डित व्यक्ति को जब वध्य भूमि में ले जाया जाता है तब रक्षकगण उससे जैसे सबकुछ छोन लेते हैं उसी प्रकार उन्होंने उससे अलंकारउपहारादि सब कुछ छीन लिए। स्वयं के जीवन को बचाने के लिए आचात से बचने के लिए वह जमीन पर इस प्रकार लौटने लगा जो हस्तियों के लिए आनन्द का कारण होता है। आहार छोड़कर भाग जाने वाले काक को तरह उसके अनुचर मार से बचने के लिए चारों ओर भाग गए। गधे की तरह उसको पीटकर, पक्षी के पंखों को नोचने की तरह उसे नोचकर और दुष्ट की तरह उसका दमन कर राजपुत्र घर लौट गए।
(श्लोक ३२२-३२४) राजा प्रजापति ने जब यह सब सुना तो तीर से बिंधे हुए की भाँति मन ही मन चिन्ता करने लगे। मेरे पुत्रों का यह व्यवहार उचित नहीं है। किससे कहूं यह बात कि मैं तो अपने अश्व द्वारा हो भू-पतित हुआ हूं। यह आक्रमण चण्डवेग पर नहीं अश्वग्रीव पर ही हुआ है क्योंकि ये दूत राजा के प्रतीक होते हैं । अतः अश्वग्रीव के पास जाने के पूर्व उस दूत को किसी प्रकार प्रसन्न करना होगा। कहीं भी आग लगे उसे तत्काल बुझा देना ही उचित है।
(श्लोक ३२५-३२८)