Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ने गणना कर बताया-'देव, आपके दूत चण्डवेग पर जो आक्रमण करेगा और पश्चिम सीमान्त में रहने वाले सिंह की जो हत्या करेगा वह आपका घातक होगा। नैमित्तिक की यह बात सुनकर वज्राहत से मन-ही-मन वे क्षुब्ध हुए; किन्तु ऊपर से उसे सम्मानित कर वैर पक्ष के दूत की तरह विदा किया।
(श्लोक २६५-२६८) पश्चिम सीमान्त पर अश्वग्रीव का धान्य क्षेत्र था। वहाँ के कृषक एक सिंह द्वारा विनष्ट होते थे। उनकी रक्षा करने के लिए उनके अधीनस्थ सोलह हजार राजाओं को उन्होंने पर्यायक्रम से पहरा देने का भार सौंपा था। गायों से कृषक जैसे खेत की रक्षा करते हैं उसी प्रकार समस्त राजा कृषकों के खेत की रक्षा करते । इस प्रकार सभी राजाओं द्वारा वहाँ के कृषक रक्षित थे।
(श्लोक २६९-२७१) अश्वग्रीव ने अब एक विशेष उद्देश्य को लेकर परिषद बूलाई। उस परिषद में उनके उपदेष्टा, मन्त्री, सेनापति, सामन्त आदियों को सम्बोधित कर वे बोले- 'साम्राज्य के सामन्त राजा, सेनापति और वीरों में ऐसा कोई राजकुमार आप लोगों ने देखा है जो असाधारण शक्तिशाली, पराक्रमी और दीर्घबाह है ?' उन्होंने जवाब दिया--'राजन, सूर्य की उपस्थिति में कौन प्रतापशाली है ? पवन के सम्मुख कौन पराक्रमी है ? गरुड़ की तुलना में कौन तीव्रगति है ? मेरु की तुलना में कौन वन्दनीय है ? समुद्र की तुलना में कौन गम्भीर है ? आपकी तुलना में ऐसा शक्तिशाली कौन हो सकता है ? कारण आपकी शक्ति से परम शक्तिशाली भी पराजित हुआ है।'
(श्लोक २७२-२७५) अश्वग्रीव बोले-'आप जो कुछ कह रहे हैं वह प्रिय भाषण है सत्य भाषण नहीं क्योंकि शक्तिशाली के ऊपर भी शक्तिशाली है। पृथ्वी बहुरत्ना है।'
__ (श्लोक २७६) तब मन्त्रियों में चारुलोचन नामक एक मन्त्री वाचस्पति की तरह सहज बोध्य वाक्य में बोला-'राजा प्रजापति के देवोपम दो पुत्र हैं जो मृत्युलोक के वीरों को तृणवत् समझते हैं।'
(श्लोक २७७.२७८) यह सुनकर सभा विसर्जित कर अश्वग्रीव ने अपने दूत चंडवेग को विशेष कार्य से प्रजापति के पास भेजा। दूत अपने प्रभु के वैभव