Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
११४]
रोहिणी को प्रधान महिषी का पद प्रदान किया था उसी प्रकार प्रजापति ने मृगावती को प्रधान महिषी का पद दिया।
(श्लोक २०७-२१५ कुछ समय व्यतीत होने पर मुनि विश्वभूति का जीव महाशुक्र विमान से च्युत होकर मृगावती के गर्भ में प्रविष्ट हुआ । सुख-शय्या शायीन मृगावती ने रात्रि के शेष भाग में वासूदेव के जन्म-सूचक सात स्वप्न देखे—विश्रस्त केशरयुक्त सिंह जिसके नाखून चन्द्रकला-से और पुच्छ चँवर-सी थी। पद्मासीना श्री देवी जिसके दोनों ओर खड़े दो हाथी सूड में क्षीर समुद्र के जल से भरे दो कुम्भ धारण कर उनका अभिषेक कर रहे थे। अन्धकार नाशकारी प्रचण्ड दीप्तिमान सूर्य जो रात्रि को भी दिवस-सा प्रकाशित कर रहा था। मधुर स्वच्छ जलपूर्ण कलश जिसका मुख पद्म द्वारा ढका था और ग्रीवा स्वर्ण घुघरू युक्त माल्य से शोभित थी। बहुविध जलजन्तु पूर्ण समुद्र जो विविध रत्न-राशि से झलमलाता था व जिसकी तरगें आकाश को स्पर्श कर रही थीं। रत्नस्तूप, पञ्चवर्णीय जिन रत्नों से विच्छुरित इन्द्र-धनुषी शोभा आकाश में विखर गई थी। निधूम अग्नि-शिखा-नेत्रों को आनन्दमयी वह अग्निशिखा आकाश को प्रदीप्त कर रही थी। स्वप्न-दर्शन के पश्चात् जागृत मृगावती ने राजा से स्वप्न फल बताने को कहने पर राजा बोले-'देवी, तुम्हारा पुत्र भरतार्द्ध का अधीश्वर होगा।' नैमित्तिकों को पूछने पर उन्होंने भी स्वप्न का यही अर्थ बताया। कारण, ज्ञानियों में मतभेद नहीं होता । तदुपरान्त समय पूर्ण होने पर रानी ने सर्वं लक्षणयुक्त अस्सी धनुष परिमित कृष्णवर्ण एक पुत्र को जन्म दिया। राजा के हृदय की तरह उस समय दिक् चक्रवाल प्रशान्त हो गए, पृथ्वी प्रसारित और लोकचित्त आनन्दपूरित हो गया। रिपूप्रतिशत्र ने आनन्दित होकर गौशाला से गायों को जैसे मुक्त किया जाता है वैसे ही कारागार से शत्रु पर्यन्त को मुक्त कर दिया । अर्द्धचक्री की भविष्यत् श्री को स्थान देने के लिए उन्होंने कामधेनु की तरह प्राथियों को धन दान दिया। पूत्र-जन्म या विवाह के समय जैसे उत्सव होता है उसी प्रकार निरवच्छिन्न उत्सव नगरवासियों ने किया। मङ्गल द्रव्यवहनकारी स्त्रियों को प्रासाद में धारण ही नहीं किया जा सका, न ही प्रासाद के सम्मुख भाग में। कारण, ग्राम-नगर से नवागतों