Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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बैठाकर स्पर्श, प्रिय सम्भाषण, आलिंगन, चुम्बनादि कर वृद्ध कंचुकी के साथ उसे पुनः अन्तःपुर में भेज दिया।
लोकोपवाद दूर करने के लिए उन्होंने मन्त्री परिषद और नागरिकों की एक सभा बुलवाई। उस सभा में राजा ने यही प्रश्न रखा- 'मेरे राज्य में, नगर में या ग्राम में या अन्य किसी स्थान में कोई रत्न उत्पन्न हो तो उस पर किसका अधिकार होगा आप लोग बताएँ ?'
(श्लोक २००-२०१) प्रत्युत्तर में वे सभी बोले- 'महाराज आपके राज्य में यदि कोई रत्न उत्पन्न होता है तब उस पर आपका एकमात्र अधिकार है दूसरे किसी का नहीं।'
(श्लोक २०२) इस प्रकार तीन बार उनकी स्वीकृति प्राप्त कर राजा ने अपनी कन्या मृगावती उन्हें दिखाई। तदुपरान्त वे बोले-'यह कन्यारत्न मेरे घर में उत्पन्न हुआ है। आप सबकी सम्मति से मैं इसके साथ विवाह करता हूं।' नागरिक राजा की इस युक्ति से लज्जित होकर घर लौट गए। राजा ने उससे गान्धर्व विवाह किया। जिस कारण वे उनकी प्रजा--सन्तान के पति बने इसलिए उनका प्रजापति नाम संसार में प्रसिद्ध हुआ। (श्लोक २०३-२०६)
___ भद्रा ने जब राज-परिवार की यह कलङ्क-कथा सुनी जिसने उसके पति को लोक निन्दा का पात्र बना दिया था बहुत दुःखी हुई और पुत्र अचल को लेकर दक्षिण देश चली गई जहां वह लोकोपवाद नहीं पहुंच सकता था। नए विश्वकर्मा की तरह अचल ने वहां माँ के लिए माहेश्वरी नामक एक नगरी स्थापित की। कुबेर ने जैसे अयोध्या को स्वर्ण पूर्ण किया था वैसे ही अचल ने सब खानों से स्वर्ण संग्रह कर उस नगरी को स्वर्ण-पूरित किया। उसने वहां उच्चकुल जात मन्त्री, रक्षी और सेवक सहित माता को नगर-लक्ष्मी की तरह प्रतिष्ठित कर उस स्थान का परित्याग किया। स्त्रियों में चूड़ामणि स्वरूप साध्वी, सच्चरित्र की अलङ्कार-रूपा, देवोपासना आदि षडविध आवश्यक कर्म में निरत भद्रा उस नगरी में रहने लगी और पितृ-भक्त अचल पुनः पोतनपुर लौट गया। पिता चाहे कैसा भी क्यों न हो आर्य के लिए सम्माननीय होता है । अचल पूर्व की भाँति ही पिता की आज्ञा का पालन करने लगा । जो सम्मान के योग्य हैं ज्ञानी उनकी आलोचना नहीं करते । चन्द्र ने जैसे