Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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११०] अपनी बुआ की कन्या मथुरा की राजकन्या से विवाह करने के लिए अनुचरों सहित वहाँ अवस्थित था। विश्वभूति एक मास के उपवास के पश्चात् भिक्षा लेने के लिए विशाखनन्दी की छावनी के पास से गुजर रहे थे। विशाखनन्दी के अनुचर उन्हें देखकर पहचान गए। अतः कुमार विश्वभूति, कुमार विश्वभूति पुकारने लगे। उन्हें देखते ही विशाखनन्दी का क्रोध उद्दीप्त हो गया। ठीक उसी समय मुनि विश्वभूति एक गाय के धक्के से जमीन पर गिर गए। यह देखकर विशाखनन्दी अट्टहास कर उठा। बोला-'कपित्थ वृक्ष के फलों को झार देने की तुम्हारी वह शक्ति कहाँ गई ?' विशाखनन्दी की बात सुनकर विश्वभूति भी क्रोधित हो उठे। उन्होंने उसी गाय को शृग द्वारा उठाकर तृण की तरह चारों ओर घुमाकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित किया। फिर गाय को नीचे उतारकर अपने गन्तव्यस्थल को जाते हुए सोचने लगे-यद्यपि मैंने संसार छोड़ दिया है फिर भी यह दुष्ट मेरे प्रति अब भी वैसा ही ईर्ष्यापरायण है। अतः उन्होंने मन ही मन यह निदान किया-अपनी तपस्या लब्ध पुण्य से मैं अगले जन्म में महाशक्तिशाली होकर जन्म ग्रहण करूँ । इस निदान की आलोचना किए बिना अपनी एक करोड़ वर्ष की आयु पूर्ण कर वे महाशुक्र विमान में परिपूर्ण आयु वाले देव रूप में उत्पन्न हुए।
(श्लोक १४७-१५८) दक्षिण भारतार्द्ध में पृथ्वी के मुकुट तुल्य उच्च प्राकार समन्वित पोतनपूर नामक एक नगर था। वहाँ सहस्रकिरण सूर्य-से सर्वगुण-सम्पन्न रिपुप्रतिशत्रु नामक राजा राज्य करते थे। भरतक्षेत्र के छह भाग की तरह वे न्याय, नीति, बल, पराक्रम, रूप और ऐश्वर्ययुक्त थे और साम, दाम, दण्ड, भेद नीति से इन्द्र के चार दन्त युक्त ऐरावत की तरह प्रतिभासित होते थे । वे सिंह की भाँति शौर्य सम्पन्न, हस्ती की तरह बलशाली, कामदेव की तरह रूपवान और बृहस्पति की तरह बुद्धिसम्पन्न थे। पृथ्वी को अधिगत करने में उनका शौर्य, उनकी तीक्ष्ण बुद्धि, भुजाओं की तरह एक दूसरे को अलंकृत करते थे।
(श्लोक १५९-१६३) उनकी प्रधान महिषी का नाम भद्रा था। वह सौभाग्य की आगार और पृथ्वी ने ही मानो रूप धारण कर लिया है, ऐसी थी। पति के प्रति भक्ति रूप अस्त्रधारिणी, नारी प्रहरी की तरह सर्वदा