Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१०५ ईशानेन्द्र की गोद में बैठाकर स्फटिक के वृष निर्मित किए। उन वषों के शृगों से निःसृत जल जो ऊपर जाकर मिल जाता था प्रभ के मस्तक पर गिरने लगा-इस प्रकार शक ने प्रभु को स्नान कराया। स्नान हो जाने पर वषों को नष्ट कर प्रभु की देह पर अंगराग लगाया। तदुपरान्त शक निम्नलिखित स्तुति करने लगा
(श्लोक ६८-७४) 'समस्त कल्याणकों में उत्कृष्ट आपका जन्म-कल्याणक मेरे लिए शुभकारी हो। हे भगवन् मैं इसलिए आपको स्नान कराता हं, अंगराग करता हं, पूजा करता हूं, स्तव-पाठ करता हैं क्योंकि आपकी भक्ति से मैं कभी तृप्त नहीं होता। धर्म रूपी वृष मिथ्या धर्माश्रयी व्याघ्र द्वारा आक्रान्त हो गया है, आपके संरक्षण में अब वह वृष भरत क्षेत्र में जहाँ इच्छा हो वहीं विचरण करे : आज आपने मेरे हृदय में अपना मन्दिर निर्माणकर हे देवाधिदेव, मुझे शरण दी है। इन मुकुटादि को मैं अलंकार नहीं मानता। आपके वरणनखों की दीप्ति जो मेरे मस्तक को स्पर्श करती है वहीं मेरा अलंकार है। चारणादि जो मेरी स्तुति करते हैं उससे मुझे आनन्द नहीं मिलता। हे त्रिलोकपति, आपका गुणगान करने में ही मुझे आनन्द है : देवसभा में सिंहासन पर बैठने में मुझे वह आनन्द नहीं मिलता जो आनन्द भापके सम्मुख धरती पर बैठकर मैं प्राप्त करता हूं। मैं अपने स्वराज्य के स्वातंत्र्य की कामना नहीं करता। हे भगवन्, मैं चाहता हूं मैं चिरकाल तक आपके अधीन रहकर ही वास करूं।'
(श्लोक ७५-८२) इस प्रकार स्तुति कर शक प्रभु को लेकर अर्हत् माता के निकट उपस्थित हुए और अवस्वापिनी निद्रा और अर्हत् प्रतिरूप को हटाकर प्रभु को माता के पास सुला दिया। शक प्रभ के सूतिकागह से और अन्य इन्द्र मेरु पर्वत से तीर्थ स्थल पर उपस्थित यात्रियों की तरह यात्रा के अन्त में स्व-स्व गृह लौट गए। (श्लोक ८३-८४)
दूसरे दिन सुबह राजा विष्णु ने पुत्र-जन्मोत्सव मनाया। पृथ्वी पर आनन्द का एकछत्र आधिपत्य स्थापित हो गया। शुभदिन पर उत्सव सहित प्रभु के माता-पिता ने उनका नाम रखा श्रेयांस कुमार । शक्र द्वारा नियुक्त पाँच धात्रियों द्वारा पालित होकर एवं शक्र प्रदत्त अंगूष्ठ का अमृत-पान कर प्रभु वद्धित होने लगे । यद्यपि