Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१०३ तरङ्गयुक्त समुद्र, पालक का ही मानो अनुज हो ऐसा एक दिव्य देव विमान, समुद्र से मानो समस्त रत्नों को आहरित कर लिया हो ऐसा रत्न-पुञ्ज, शुक्र-सी उज्ज्वल धूमहीन अग्नि तीर्थङ्कर जन्म की सूचना देने वाले ये चौदह महास्वप्न विष्णुदेवी ने अपने मुख में प्रविष्ट होते देखे ।
(श्लोक ३४-४०) भाद्रपद कृष्णा द्वादशी के दिन चन्द्र जब श्रवणा नक्षत्र में था विष्णुदेवी ने गैंडे के लक्षण से युक्त स्वर्ण-वर्ण एक पुत्र को जन्म दिया।
(श्लोक ४१) सिंहासन कांपने से तीर्थङ्कर जन्म अवगत कर अधोलोक से भोगकरा आदि आठ दिककूमारियां आईं। उन्होंने तीर्थकर माता को नमस्कार कर अपना परिचय दिया और 'डरें नहीं' कहकर वायु सृष्टि की एवं सूतिका-गृह के चारों ओर एक योजन तक का स्थान परिष्कृत कर उनसे कुछ दूर खड़ी होकर गीत गाने लगीं।
(श्लोक ४२-४४) तदुपरान्त ऊर्द्धलोक से नन्दनवन के शृग पर अवस्थित मेघंकरा आदि आठ दिककुमारियाँ आयीं। उन्होंने तीर्थकर माता को नमस्कार कर अपना परिचय दिया एवं मेघ-सृष्टि कर सूतिका घर के चारों ओर एक योजन परिमित स्थान पर सुगन्धित जल बरसाया। फिर पुष्पवर्षणकर धूप जलाया और विष्णुदेवी से थोड़ी दूर खड़ी होकर अर्हत् का गुणगान करने लगीं। (श्लोक ४५-४७)
रूचक पर्वत की पूर्व दिशा से नन्दोत्तरा आदि, दक्षिण दिशा से समाहारा आदि, पश्चिम दिशा से इला आदि, उत्तर दिशा से अलम्बूषा आदि आठ-आठ दिक्कुमारियाँ आयीं और अर्हत् माता को नमस्कार कर यथाविधि स्वयं का परिचय देकर पूर्वादि दिशा में अवस्थित होकर दर्पण, कलश, पंख और चँवर धारण कर प्रभु का गुणगान करने लगीं। चार विदिशाओं से चित्रादि दिक्कूमारियाँ आकर इसी प्रकार चारों विदिशाओं में हाथ में प्रदीप लेकर गीत गाने लगीं।
(श्लोक ४०-५१) रूचक पर्वत के आभ्यंतर से रूपादि चार दिक्कुमारियों ने आकर अर्हत् माता को नमस्कार कर अपना परिचय दिया। तदुपरान्त चार अंगुल परिमाण प्रभु का नाभिनाल रखकर शेष अंश काट डाला। फिर जमीन में गड्ढा खोदकर उसे गाड़ दिया। उस