Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
१०४]
गर्त को हीरों से पूर्णकर उस पर पूर्वादल की एक अपरूप वेदी का निर्माण किया। सूतिका गृह के तीन ओर उन्होंने चार कक्ष युक्त बदली गृह का निर्माण किया और वहाँ एक-एक रत्न-सिंहासन रखा। अर्हत् को गोद में लेकर अर्हत् माता का हाथ पकड़ कर उन्हें दक्षिण दिशा के कदली गृह के सिंहासन पर बैठाया। तदुपरान्त लक्षपाक तेल से उनकी देह को संवाहित कर सुगन्धित उबटन लगाया। फिर पूर्व दिशा के कदली गृह में ले जाकर सिंहासन पर बैठाकर सुगन्धित जल, पुष्प-जल और निर्मल जल से स्नान कराया। फिर उन्हें वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर उत्तर दिशा के कदली गह के रत्न-सिंहासन पर बैठाया। वहाँ अरणि से अग्नि प्रज्ज्वलित कर गो-शीर्ष चन्दन-काष्ठ जलाया और भष्म को ताबीज की तरह दोनों के हाथों में बांध दिया। आप पर्वत तुल्य हो कहकर रत्न-जड़ित प्रस्तर गोलक ठोंका। तदुपरान्त वे अर्हत् और अर्हत-माता को सूतिका गृह में लाकर उनसे कुछ दूर खड़े होकर मांगलिक गीत गाने लगीं।
__(श्लोक ५२-६२) तत्पश्चात् शक्र प्रभु के सूतिका गृह तक आए और पालक विमान में बैठे हुए उस ग्रह की प्रदक्षिणा दी। ईशान कोण में उस विमान को रखकर उन्होंने सूतिका गह में प्रवेश किया और अर्हत एवं अर्हत माता की वन्दना की। रानी को अवस्वापिनी निद्रा में निद्रित कर और उनके पास अर्हत् का विम्ब रखकर इन्द्र ने पाँच रूप धारण किए। उन पाँच रूपों में एक रूप में प्रभु को गोद में लिया, दूसरे रूप में प्रभु के मस्तक पर छत्र धारण किया, तीसरेचौथे रूप में चँवर लिया और पाँचवें रूप में एक हाथ में वज्र लेकर प्रभु के अग्रवर्ती होकर चलने लगे। मुहुर्त मात्र में शक्र अतिपाण्डुकवला शिला पर उपस्थित हो गए और प्रभु को गोद से लिए वहाँ बैठ गए।
(श्लोक ६३-६८) तदुपरान्त स्वर्ग के अच्युतादि नौ इन्द्र, भवनपतियों के चमरादि बीस इन्द्र और व्यन्तर देवों के काल आदि बत्तीस इन्द्र, ज्योतिष्कों के सूर्य-चन्द्र दो इन्द्र भगवान् के अभिषेक के लिए वहां आए। शक के आदेश से आभियोगिक देवों ने कुम्भादि निर्मित किए। तदुपरान्त अच्युत से प्रारम्भ कर समस्त इन्द्रों ने तीर्थ से लाए पवित्र जल से प्रभु को स्नान कराया। अन्त में शक ने प्रभु को