Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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की तरह पृथ्वी पर उनका एकछत्र राज्य था ताकि राज्य में कहीं कोई अपूर्णता न रहे । फलतः अमात्यों के सत्परामर्श से शत्रुओं की श्री को आकृष्ट कर उनके अधिगत कर दिया था। अत: उनका राज्य विरोधहीन स्वर्गराज की तरह प्रतीत होता था। उनका दुर्ग, प्राकार, बैताढय पर्वत स्थित विद्याधरों की आवास-श्रेणी को भी लज्जित करता था। उनका कोषागार कुबेर के धनागार से भी अधिक समृद्ध था। उनका सैन्यदल हस्ती, अश्व, रथ, पदातिक और मित्र-वाहिनी से पृथ्वी को आवृत्त करता था और शत्रुओं के हृदय को शष्य क्षेत्र की तरह कर्षित करता था।
(श्लोक ३-७) विवेक जात वैराग्य से वे यह अनुभव करने लगे यह शरीर, यौवन, ऐश्वर्य यहाँ तक कि जो कुछ भी प्रिय है उसका कोई मूल्य नहीं । सामान्य आहार ग्रहण कर, सामान्य शय्या पर सोकर जिस प्रकार जैसे-तैसे समय बिताया जाता है उसी प्रकार उन्होंने कुछ समय राज्य-भोग में व्यतीत किया। तत्वज्ञान रूपी औषध से जब वे राज्य-भोग रूपी व्याधि से मुक्त हुए तब धर्म प्राप्ति के लिए वज्रदन्त नामक मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली। सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर वे कठोर तपश्चर्या और परिषहों को सहन कर शरीर और कर्म दोनों को शीर्ण करते हुए प्रव्रजन में निरत हो गए । शास्त्र वर्णित स्थानक, अर्हत् आदि की बहुविध उपासना कर उन्होंने तीर्थंकर गोत्र कर्म उपार्जन किया। कठोर तपस्या व शुक्ल ध्यान में निरत रहकर चारों शरण ग्रहण कर यथा समय वे कालगत हुए और महाशुक्र विमान में उत्पन्न हुए।
(श्लोक ८-१४) जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में पृथ्वी के रत्न-जड़ित नपुर तुल्य सिंहपुर नामक एक नगरी थी। उस नगरी की अट्टालिकाओं की रत्नजडित छतें तारिकापूञ्ज प्रतिबिम्बित कर अक्ष-सज्जित अक्षस्थली का भ्रम उत्पन्न करते थे। नगर-प्राकारों के शिखर संलग्न मेघ ललाट पर लगे टीके से प्रतीत होते थे। सम्पन्न गहों में सुन्दरियों के न पुरों की रुनझुन से लगता मानो श्रीदेवी के सम्मानार्थ यहां संगीतानुष्ठान का आयोजन किया गया है। वर्षा के जल के साथ प्रवाहित छत की रत्न कणिकाएँ सबके लिए सुलभ होकर साम्य-समुद्र में मिल जातीं। विष्णु-से प्रतापी बाहुबल सम्पन्न और कीर्तिमान विष्णु नामक एक राजा वहां राज्य करते थे। माटी में