Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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केवलज्ञानी, १२००० वैक्रियलब्धिधारी, ५८०० वादी, १८९००० श्रावक और ४५८००० श्राविकाएँ हुयीं। (श्लोक ११६-१२०)
___ मोक्ष समय निकट आने पर प्रभु सम्मेद शिखर गए और १००० मुनियों सहित अनशन ग्रहण कर लिया। एक मास पश्चात् बैशाख कृष्णा द्वितीय को चन्द्र जब पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में था प्रभु १००० मुनियों सहित मोक्ष को प्राप्त हुए। पच्चीस हजार पूर्व युवराज रूप में पचास हजार पूर्व राजा रूप में पच्चीस हजार पूर्व व्रती रूप में प्रभु रहे । आपकी सम्पूर्ण आयु एक लाख पूर्व की थी। सुविधि स्वामी के निर्माण से शीतलनाथ स्वामी के निर्वाण पर्यन्त नौ करोड़ सागरोपम काल व्यतीत हुआ। प्रभु का मोक्ष गमन उत्सव यथारीति सम्पन्न कर शक्रादि देव स्व-स्व आवास को लौट गए।
(श्लोक १२१-१२६) अष्टदल कमल के अष्टदल पत्रों की तरह ध्यान योग्य तृतीय पर्व के आठ सर्गों में सम्भव स्वामी से आरम्भ कर आठ तीर्थकरों का जीवन-चरित्र वर्णित हुआ है। इनका ध्यान करने पर मनुष्य निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करेगा।
(श्लोक १२७) अष्टम् सर्ग समाप्त तृतीय पर्व समाप्त
चतुर्थ पर्व
प्रथम सर्ग भगवान् श्रेयांसनाथ के चरण-नखों की दीप्ति मुक्ति-मार्ग को प्रकाशित करने वाले दीप की तरह है। वह दीप्ति तुम लोगों के लिए कल्याणकारी हो। त्रिलोक को पवित्र करने वाली और कर्म रूपी लता को उच्छेद करने वाले हँसिए की तरह भगवान् श्रेयांसनाथ का पवित्र जीवन-वत्त अब मैं विवत करूंगा। (श्लोक' १-२)
पुष्कराद्ध द्वीप के पूर्व विदेह में कच्छ नामक विजय में क्षेमा नामक एक नगरी थी। वहाँ नलिनगुल्म नामक एक राजा राज्य करते थे। धार्मिक होने के कारण वे सर्वदा कलंकशून्य थे। उनके चरण-कमल राजाओं के मुकुटों द्वारा घर्षित होते थे। स्वर्ग के इन्द्र