Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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स्तुति के पश्चात् जिनेश्वर को ग्रहण कर शक्र ने विधि अनुसार उन्हें उनकी माँ के पास सुला दिया। (श्लोक ४८)
जिस कारण उनकी माँ ने गर्भधारण के समय धार्मिक क्रियाओं में प्रवीणत्व लाभ किया था, जिस कारण उन्हें पुष्प-दोहद उत्पन्न हुआ था उसी कारण को दष्टिगत कर भगवान् के मातापिता ने उनका नाम सुविधि और पुष्पदन्त रखा। जन्म से ही अनन्यधर्मा प्रभु सूर्य जब मेष राशि में प्रवेश करता है तो दिनों-दिन दिन जैसे बढ़ता जाता है उसी प्रकार बढ़ने लगे । स्वभाव से ही पवित्र क्रमशः उन्होंने यौवन को प्राप्त किया। प्रभु की लम्बाई थी एक सौ धनुष और उनकी देह का रंग था क्षीर-समुद्र सा श्वेत । यद्यपि प्रभु संसार से पूर्ण विरक्त थे फिर भी माता-पिता की इच्छा से श्री से भी अधिक सुन्दर राजकुमारियों से आपने विवाह किया। जन्म से पचास हजार पूर्व व्यतीत हो जाने के बाद पिता के प्रति श्रद्धा सम्पन्न प्रभु ने राज्य-भार ग्रहण किया। पचास हजार पूर्व और अट्ठाईस पूर्वाङ्ग तक उन्होंने नीतिपूर्वक राज्य-शासन किया।
(श्लोक ४९-५५) प्रभु के व्रत ग्रहण करने की इच्छा करने पर चाट कारों की भांति लौकान्तिक देवों ने आकर उन्हें व्रत ग्रहण करने को प्रेरित किया। आसक्तिहीन पृथ्वीपति दरिद्र के लिए कल्पवृक्ष सम होकर एक वर्ष तक ईप्सित दान दिया। दान देना समाप्त होने पर जन्म-महोत्सव की भाँति ही देवों ने उनका दीक्षा-महोत्सव सम्पन्न किया । तदुपरान्त प्रभु सुरप्रभा नामक पालकी पर आरोहित होकर देवता, असुर और मनुष्यों से परिवत्त हुए सहस्राम्रवन उद्यान में आए । अग्रहण कृष्ण अष्टमी को चन्द्र जब मूला नक्षत्र में था तब प्रभु ने दो दिनों के उपवास सह एक सहस्र राजाओं के साथ दीक्षा ग्रहण की।
(श्लोक ५६-६०) दूसरे दिन सुबह श्वेतपुर नगरी के राजा पुष्प के गृह में भगवान् ने खीरान्न से पारणा किया। देवों ने रत्नवर्षादि पञ्च दिव्य प्रकट किए। जहां वे खड़े थे वहां राजा पुष्प ने रत्न-जड़ित वेदी बनवाई। आसक्तिहीन प्रभु ने संसार से विरक्त होकर छद्मस्थ अवस्था में चार मास तक प्रव्रजन किया। (श्लोक ६१-६३)
चार मास के पश्चात् वे सहस्राम्रवन उद्यान में लौट आए व