Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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नवमेघ रूप में उदित हुए हैं। वसन्त के आविर्भाव से वृक्ष जैसे समृद्ध हो उठता है वैसे ही आपके दर्शन से जीव नवीन समृद्धि प्राप्त करे। आपके दर्शनों से धन्य बना दिन ही मेरे निकट दिन है, अन्य दिन तो कृष्ण पक्ष की रात्रि की तरह है। मनुष्यों का मन्द कर्म सतत जीव द्वारा गुम्फित होता रहता है। अयस्कान्त मणि के स्पर्श से जैसे लौहत्व विदूरित होता है वैसे ही वह कर्म आपके दर्शन से विद्वरित हो। मैं यहाँ, स्वर्ग में या अन्य किसी भी स्थान में रहं, हृदय में अनन्य आपको धारण कर मानो आपका वाहन बन जाऊँ।'
(श्लोक ३०.४४) इस प्रकार दशम तीर्थंकर की स्तुति कर सौधर्मेन्द्र ने यथारीति जातक को ग्रहण और वहन कर ले जाकर देवी नन्दा के पास सुला दिया।
(श्लोक ४५) ___ पृथ्वी को मुक्त करने के लिए जिनका जन्म हुआ है ऐसे तीर्थंकर के जन्म को पवित्र करने के लिए राजा दृढ़रथ ने बन्दी आदि को मुक्त कर पुत्र जन्मोत्सव किया। जब जातक गर्भ में था तो उसके शीतल स्पर्श से नन्दा की तप्त देह शीतल हो गई थी अतः जातक का नाम रखा गया शीतल।
(श्लोक ४६-५७) बालक वेशी देवों द्वारा सेवित होकर त्रिलोकपति बेलाधारी इन्द्र द्वारा सेवित समुद्र की तरह दिन प्रतिदिन वद्धित होने लगे। पथिक जैसे गाँव से होता हुआ शहर पहुंचता है वैसे ही प्रभु बाल्यकाल अतिक्रम कर यौवन को प्राप्त हुए। (श्लोक ४८-४९)
नब्बे धनुष दीर्घ प्रभु जानु पर्यन्त लम्बे हस्तों के कारण लतावेष्टित महीरुह से लगते थे। यद्यपि वे इन्द्रियों के विषय में अनासक्त थे तब भी हस्ती जैसे खाद्यपिण्ड को ग्रहण करता है वैसे ही प्रभु ने पिता-माता द्वारा अनुबन्धित होकर पत्नी को ग्रहण किया। पच्चीस हजार पूर्व व्यतीत होने पर शीतलनाथ स्वामी ने पिता द्वारा आदिष्ट होकर राज्यभार ग्रहण किया। अमित बाहुबल से उन्होंने पैतृक राज्य पर पचास हजार पूर्व तक शासन किया।
(श्लोक ५०-५३) जब प्रभ के मन में वैराग्य उत्पन्न हआ तो लोकान्तिक देवों का सिंहासन कम्पित हुआ। अवधिज्ञान से वे जान गए कि जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के दक्षिणार्द्ध में दशम तीर्थकर दीक्षा ग्रहण के अभि