Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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गति से चलने की शिक्षा उन्हीं से ली थी। जब वे बोलती तब उनके मुख सौरभ से आकृष्ट होकर भ्रमर आने लगते । विस्तार में जिस प्रकार आकाश अनन्य है एक शब्द में वे भी वैसी ही अनन्य थीं। अपने गुणों के कारण राजा दृढ़रत्न के हृदय में वे इस प्रकार बस गई थीं-मानो वहां उत्कीर्णित हो गई हों। (श्लोक २१-२५)
उधर प्राणत नामक स्वर्ग में पद्मोत्तर के जीव ने बीस सागरोपम की आयूष्य पूर्ण की। वैशाख कृष्णा छठ को चन्द्र जब पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में था तब पद्मोत्तर का जीव वहां से च्युत होकर नन्दा देवी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। सुख-शय्या पर सोई रानी नन्दा देवी ने तीर्थकर जन्मसूचक चौदह महास्वप्न देखे । माघ कृष्णा द्वादशी को चन्द्र जब पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में था तब नन्दादेवी ने एक पुत्र को जन्म दिया । जातक की देह का रंग था तप्त सुवर्ण सा और वह स्वस्तिक लांछनयुक्त था।
(श्लोक २६-२९) ___ तब छप्पन दिक्कुमारियों से माठ अधोलोक से, आठ उर्ध्वलोक से, आठ-आठ रूचक पर्वत की चारों दिशाओं से, चार मध्यवर्ती स्थान से, चार रूचक द्वीप के केन्द्र से सिंहासन कम्पित होने पर वहां आईं और जन्म-कल्याणक उत्सव सम्पादित किया । शक्र भी तीव्र गति से वहां पहुंचे और प्रभु को गोद में लेकर देवों से परिवत हुए सुमेरु पर्वत पर गए। प्रभु को गोद में लेकर शक अति पाण्डुकवला पर रखे सिंहासन पर बैठ गए। तब अच्युतादि इन्द्रों ने समुद्र, नदी व सरोवर से लाए जल से प्रभु को स्नान करवाया। तदुपरान्त सौधर्मेन्द्र ने प्रभु को ईशानेन्द्र की गोद में देकर स्फटिक वृष के शृङ्ग से निकलते जल से प्रभु का अभिषेक किया। तदुपरान्त त्रिलोकेश्वर की देह में अङ्गरागादि लेपन व अलंकारादि से पूजन कर निम्नलिखित स्तव पाठ किया
'हे इक्ष्वाकु वंश रूप क्षीर समुद्र के लिए चन्द्र तुल्य, आपकी जय हो ! पृथ्वी की अज्ञानान्धकार रूपी निद्रा को दूर करने में सूर्य रूप, आपकी जय हो ! आपको देखने के लिए, आपका गुणगान करने के लिए, आपकी पूजा करने के लिए मेरे नेत्र, मेरी जिह्वा और हस्त को अनन्तता प्राप्त हो। हे भगवान्, हे दशम तीर्थाधिपति, यह श्रद्धा-सुमन आपके चरण-प्रान्तों पर रखता हूं ताकि उसका फल प्राप्त होगा। दुःख ताप-तप्त जीवन को आनन्द देने के लिए आप