Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ल हुए हैं । हम अपने कर्तव्य के रूप में उन्हें दीक्षा ग्रहण को प्रेरित करें, ऐसा सोचकर सारस्वत आदि देव ब्रह्मलोक से वहाँ आकर प्रभु को प्रणाम कर बोले- 'हे भगवन्, घाट को छोड़कर जिस प्रकार पार्वत्य नदी को पार नहीं किया जा सकता उसी प्रकार दुस्तर संसार - समुद्र को पार करने वालों के प्रति कृपा कर धर्म तीर्थ की प्रतिष्ठा करें ।' ( श्लोक ५४ - ५८ )
चले गए और
( श्लोक ५९ )
ऐसा कहकर लोकान्तिक देव ब्रह्मलोक को शीतलनाथ स्वामी ने एक वर्ष तक वर्षीदान दिया
।
वर्षीदान समाप्त होने पर सिंहासन कम्पित होने से इन्द्रगण वहाँ आए और शीतलनाथ स्वामी का स्नानाभिषेक किया । तदुपरांत त्रिलोक के अलंकार स्वरूप भगवान् वस्त्र और अलंकार धारण कर सौधर्मेन्द्र के हाथ पर हाथ रखकर अन्य इन्द्रों द्वारा चंवर छत्र पकड़ने पर चन्द्रप्रभा नामक श्रेष्ठ शिविका में आरोहित हुए, हजारों देव, असुर और राजन्यों से परिवृत होकर वे अपनी राजधानी के निकटस्थ सहस्राम्रवन नामक उद्यान में गए । संसार सागर को अतिक्रम कर मोक्ष लाभ के इच्छुक भगवान् ने वहाँ पहुंचते ही मानो बोझ हो इस प्रकार अलंकार को उतार दिया । शक्र द्वारा प्रदत्त देवदूष्य वस्त्र स्कन्ध पर रख कर उन्होंने पंच मुष्ठिक लोच किया ।उन केशों को इन्द्र ने क्षीर-समुद्र में फेंक दिया । फिर कोलाहल शान्तकर द्वारपाल की तरह खड़े हो गए। दो दिनों के उपवासी प्रभु ने एक हजार राजाओं सहित देव, असुर और मनुष्यों के सम्मुख सब प्रकार के आरम्भ समारम्भ का परित्याग किया। उस दिन माघ कृष्णा द्वादशी थी । चन्द्र पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में था । प्रभु को अतिदिव्य मनःपर्याय ज्ञान उत्पन्न हुआ । देवादि सभी उन्हें प्रणाम कर, स्व-स्व स्थान को लौट गए । (श्लोक६०-६९)
रिष्टपुर नगर के राजा पुनर्वसु के आवास पर खीरान्न ग्रहण कर भगवान् ने पारणा किया। देवों ने रत्न वर्षादि पंच दिव्य प्रकट किए । जहाँ खड़े होकर भगवान् ने पारणा किया था वहाँ राजा पुनर्वसु ने रत्न जड़ित पाद- पीठ का निर्माण करवाया । विभिन्न व्रतों का पालन करते हुए परिषह सहते हुए भगवान् शीतलनाथ ने तीन मास तक छद्मस्थ अवस्था में विचरण किया ।
( श्लोक ७०-७२ ) सहस्राम्रवन में लौट
तीन महीने के पश्चात् त्रिलोकनाथ पुनः