Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सदैव जागरूक रहते थे । आज नहीं तो कल इस राज्य का परित्याग करूँगा ऐसा चिन्तन करते हुए वे मानो विदेश में रह रहे हों इस प्रकार संसार में अनासक्त होकर रहने लगे । ( श्लोक ३-७ )
एक दिन तृणवत् उन्होंने उस राज्य का परित्याग कर विस्ताध नामक आचार्य से दीक्षा ग्रहण कर ली और अतिचारहीन चारित पालन और शास्त्रोक्त बीस स्थानकों में कई की आराधना कर उन्होंने तीर्थंकर गोत्र कर्म उपार्जन किया पर विशेष व्रत पालन और कठोर तपश्चर्या के नामक दसवें देवलोक में उत्पन्न हुए ।
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आयुष्य पूर्ण होने कारण वे प्राणत
( श्लोक ८ - १० )
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में भद्दिलपुर नामक सुन्दर और वैभवशाली नगर था । परिखा से परिवृत और स्वर्ण प्राचीरों से वेष्टित इस नगरी की लवण समुद्र परिवृत और जगती वेष्टित जम्बूद्वीप की तुलना की जाती है । सान्ध्य वेला में इसकी विपणियों में प्रज्वलित आलोकमाला नगरश्री के कण्ठ में रत्नमाला-सी सुशोभित होती थी । भोगवती और अमरावती के समस्त वैभव का सार यहीं रहने से यह नगरी देव और नागदेवों की क्रीड़ा भूमि में परिवर्तित हो गई थी । ( श्लोक ११-१४ )
उत्सव में जिस प्रकार आत्मीय परिजनों को खिलाया जाता है उसी प्रकार यहां विभिन्न प्रकार के आहार प्रार्थियों को दानशाला में खिलाया जाता था । ( श्लोक १५ ) इस नगरी के राजा का नाम था दृढरथ । शत्रु मेखला को नष्ट करने में वे समुद्र की तरह पृथ्वी की मेखला रूप थे । किन्नर उनके गुणों की जो प्रशंसा करते उस विषय में वे इतने विनयी थे कि उन्हें वे अगुण ही लगते । वे शत्रुओं से बरबस जो धन ग्रहण करते उसे दरिद्रों में वितरण कर देते मानो अपहरण रूप पाप का प्रायश्चित कर रहे हों । राजन्य वर्ग भूलुण्ठित होकर उन्हें प्रणाम कर राज्य प्राप्त करते । एक बिन्दु तेल जैसे जल में फैल जाता है उसी प्रकार गुरु प्रदत्त एक पंक्ति उपदेश भी उनमें व्याप्त हो जाता |
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( श्लोक १६-२० )
चित्त को आनन्ददायिनी नदियों में जैसे मन्दाकिनी है वैसे ही साध्वियों में अग्रगण्या उनकी रानी का नाम नन्दा था । वे मंथर गति से चलतीं जिसे देखकर लगता मानो राजहंसनियों ने मंथर