Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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वरछी और अन्य हाथ वरद् मुद्रा में था। बाएँ दोनों में एक हाथ में गदा और दूसरे में पाश था। इसी प्रकार पदम-वाहना स्वर्णवर्णा महाकाली नामक शासनदेवी उत्पन्न हुई। उनके दाहिने हाथ के एक हाथ में पाश और दूसरा वरदमुद्रा में था। बाएँ हाथ के एक हाथ में विजोरा नींबू और दूसरे में गदा थी। (श्लोक २४६-२४९)
___ भगवान की वाणी पैंतीस अतिशयों से युक्त थी। इस प्रकार भव्य जीवों को प्रमुदित करते हुए वे पृथ्वी पर विचरण करने लगे । प्रभु के संघ में ३,२०,००० साधु, ५,३०,००० साध्वियाँ, २,४०० चतुर्दश पूर्वी, ११,००० अवधिज्ञानी, १०,४५० मनःपर्यवज्ञानी, १३,००० केवली, १८,४०० वैक्रिय लब्धिधारी, १०,४५० वादी, २,८१,००० श्रावक और ५,१६,००० श्राविकाएँ थीं। प्रभु चौंतीस अतिशयों सहित पृथ्वी पर विचरण करते रहे। (श्लोक २५०-२५६ ।
केवल ज्ञान होने के पश्चात् भगवान् सुमतिनाथ १२ अंग २० वर्ष कम एक पूर्व तक पृथ्वी पर विचरण किया। अपना निर्वाण समय निकट जानकर एक हजार मुनियों सहित सम्मेद शिखर पर जाकर अनशन ग्रहण कर लिया। एक मास के उपवास के पश्चात् त्रिलोकनाथ आयुष्य समाप्त और चार अनन्त प्राप्त होने के पश्चात शैलेसी ध्यान में निरत हो गए। चैत्र शुक्ला नवमी को चन्द्र जब पूनर्वसू नक्षत्र में था तब भगवान् वहाँ से जहाँ जाकर प्रत्यावर्तन न करना पड़े उस लोक को प्राप्त किया। (श्लोक २५७-२६०)
भगवान् दस लाख पूर्व कुमारावस्था में रहे, २९ लाख पूर्व और १२ अंग तक राजा रूप में, १२ अंग कम एक लाख पूर्व तक व्रती रूप में विचरे । अतः आपका पूर्णायु था ४० लाख पूर्व । अभिनन्दन स्वामी के निर्वाण के बाद नौ लाख कोड़ सागर व्यतीत होने पर सुमतिनाथ प्रभु का निर्वाण हुआ। (श्लोक २६१-२६३)
भगवान् और एक हजार मुनियों की अन्त्येष्टि क्रिया देवों ने यथाविधि सम्पन्न की। नन्दीश्वर द्वीप में निर्वाण-उत्सव मनाकर वे अपने-अपने घर को लौट गए।
(श्लोक २६४) तृतीय सर्ग समाप्त