Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ग्रहण किया । दत्त आदि भगवान् के तिरानवे गणधर हुए । उत्पाद आदि त्रिपदी द्वारा उन्होंने द्वादशाङ्गी की रचना की । भगवान् की देशना के पश्चात् प्रधान गणधर दत्त स्वामी ने भगवान् द्वारा शक्ति सम्पन्न होकर उनके पाद- पीठ पर बैठकर जन-साधारण के सम्मुख प्रवचन दिया । तरुण नागरिक गीत वाद्यादि समाप्त होने पर जिस प्रकार घर लौट जाते हैं उसी प्रकार उनके प्रवचन समाप्त होने पर देवादि स्व-स्व निवास को लौट गए । ( श्लोक १०४ - १०७) भगवान् चन्द्रप्रभ के तीर्थ में हरितवर्ण हंसवाहन विजय नामक यक्ष उत्पन्न हुए । उनके दाहिने हाथ में चक्र, बाएँ हाथ में गदा थी । इसी प्रकार पीतवर्णा मरालवाहना भृकुटि नामक यक्षी हुई । जिनकी दाहिनी ओर के दो हाथों में क्रमश गदा व तलवार और बाईं ओर के दो हाथों में खड्ग और कुठार थी । वे तीर्थङ्कर के शासन देव-देवी बने । वे सदैव उनके साथ-साथ रहते थे । आकाश में जैसे चन्द्र उसी तरह पृथ्वी पर महाशक्ति सम्पन्न चन्द्रप्रभ प्रव्रजन करने लगे । ( श्लोक १०८ - १११ )
भगवान् के तीर्थ में २,५०,००० साधु, ३, ८०,००० साध्वियां, २,००० चौदह पूर्व धारी, ८,००० अवधिज्ञानी, ८,००० मनःपर्याय ज्ञानी, १०,००० केवली, १४,००० वैक्रिय लब्धिधारी, ७,६०० वादी, २,५०,००० श्रावक और ४,९१,००० श्राविकाएँ थीं ।
( श्लोक ११२ - ११५ ) चौबीस पूर्वाङ्ग और छह मास कम एक लाख पूर्व तक प्रभु केवली रूप में विचरण कर सम्मेत शिखर पर्वत पर पधारे । एक हजार मुनियों सहित भगवान् देवता, असुर आदि द्वारा सेवित होकर एक मास का पादोपगमन व्रत ग्रहण किया। समस्त कर्म निरोध कर अविचल ध्यान में चार अघाती कर्म विनष्ट कर डाले । भाद्र कृष्णा सप्तमी को चन्द्र जब श्रवण नक्षत्र में था प्रभु ने एक हजार मुनियों सहित निर्वाण प्राप्त कर मोक्ष को गमन किया ।
(श्लोक ११६-११९)
भगवान् अढ़ाई लाख पूर्व तक राजकुमार रूप में, साढ़े छह लाख पूर्व तक राजा रूप में और चौबीस पूर्वाङ्ग कम एक लाख पूर्व तक तीर्थङ्कर रूप में रहे । भगवान् की सर्वायु दस लाख पूर्व की थी । सुपार्श्व स्वामी के निर्वाण के नौ सौ करोड़ सागर के बाद