Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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चन्द्र-किरणों से ही चन्द्रकान्त मणि उत्पन्न होती है। अपने समस्त कल्याणकों में आप जब नारक जीवों को भी आनन्दित करते हैं तब तिर्यंच, मनुष्य और देवों को क्यों आनन्दित नहीं करेंगे ? आपके जन्म-कल्याणक के समय जो आलोक त्रिलोक में व्याप्त हआ था आपके केवल ज्ञान रूपी सूर्य के प्रकाश में वह रक्तवर्ण धारण करेगा। हे प्रभो, आपकी अनुकूलता से ही मानो समस्त दिशाएँ अनुकूल हुई हैं। यह सुखप्रद वायु कल्याण के लिए ही प्रवाहित हो । हे भगवन्, आप जब जगत को आनन्द दान करते हैं तब उसे निरानन्द कौन कर सकता है ? मुझ अविवेकी को धिक्कार है ! हे प्रभो, हमारे आसन ही धन्य हैं जो कम्पित होकर आपके जन्म को तुरन्त घोषित कर देते हैं । यद्यपि निदान करना निषिद्ध है फिर भी मैं यह निदान करता हैं कि हे प्रभो, आपके दर्शनों के फलस्वरूप आपमें मेरी भक्ति अविचल रहे ।'
(श्लोक ३८-४५) ___इस प्रकार स्तुति कर इन्द्र भगवान् को लेकर त्वरित गति से लौट गए और नहीं जान सके इस प्रकार रानी पृथ्वी देवी के पार्श्व में शिशु को सुला दिया । बन्दियों की मुक्ति आदि महत् कार्यों द्वारा राजा ने प्रजा को आनन्दित कर आनन्द वृक्ष की तरह पूत्र-जन्म का महा-महोत्सव किया। जब प्रभु गर्भ में थे उनकी माँ का पाव अत्यन्त सुन्दर दिखाई पड़ता था। इसीलिए राजा प्रतिष्ठ ने पूत्र का नाम सुपार्श्व रखा। शक्र द्वारा रक्षित अंगुष्ठ का अमृत-पान कर वे क्रमशः बड़े होने लगे। मातृ-स्तन पान नहीं करने के कारण अर्हत् देवों के लिए भी पूज्य होते हैं। बाल-चञ्चलता के कारण वे बार-बार धात्रियों की गोद से उतरकर यहां-वहां खेलने लगे। जो देव मनुष्य रूप धारण कर बाजी लगाकर उनके साथ खेलते उन्हें वे सहज ही पराजित कर देते थे। क्रीड़ा में भी अर्हतों के तुल्य कौन हो सकता है ? कामी जिस प्रकार क्रीड़ा कर रात्रि व्यतीत करता है उसी प्रकार नानाविध क्रीड़ा कर उन्होंने बाल्यकाल बिताया।
(श्लोक ४६-५२) दो सौ धनूष दीर्घ और सर्व सुलक्षण युक्त प्रभ ने सौन्दर्य के अलंकार तुल्य यौवन को प्राप्त किया। पिता-माता के प्रति आदर रखने के कारण उन्होंने विवाह किया। पिता-माता की आज्ञा तो त्रिजगत्पति के लिए भी पालनीय है। फिर अपने भोग-कर्मों को भी