Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
४८] का वर्ण सुवर्ण-सा था और क्रौंच लाञ्छन-युक्त था । मुहूर्त झर के लिए त्रिलोक में दिव्य प्रकाश फैल गया और नारकी जीवों को भी आनन्द प्राप्त हुआ । शक्र का सिंहासन कम्पित हुआ।
(श्लोक १७९-१८२) दिक-कुमारियों ने उनका जन्म-कार्य सम्पन्न किया और शक उन्हें मेरु पर्वत पर ले गया। अच्युतादि वेसठ इन्द्रों ने शक की गोद में उपविष्ट प्रभु को तीर्थजल से अभिषिक्त किया। तदुपरान्त ईशानेन्द्र की गोद में बैठाकर शक ने स्फटिक निर्मित चार वृषभों के शृङ्गों से निकलते जल से प्रभु का अभिषेक किया। चन्दनादि लेपन के पश्चात् उन्हें रत्नाभरणादि पहनाकर पूजा की और इस प्रकार स्तुति करने लगे :
(श्लोक १८३.१८६) 'हे भगवन, आपके जन्म-कल्याणक में भाग लेकर मैं धन्य हो गया हूं। वह पृथ्वी ही क्या जहां आपके चरण-कमल न पड़े हों ! आपको देखने के आनन्द से नेत्र सार्थक हो गए हैं, आपकी पूजा कर हाथ अपने करणीय कार्य को कर सूसिद्ध हो गए हैं। बहुत दिन पश्चात् आपका स्नानाभिषेक और चन्दनादि कर मेरी कामना चरितार्थ हो गई है। हे भगवन्, अब तो मैं संसार को ही अच्छा कह सकता हूं जहां आपके दर्शन ही मुक्ति के कारण हैं। स्वयंभूरमण समुद्र की तरंग की गणना की जा सकती है; किन्तु आप जैसे अलौकिक शक्तिधारी के गुणों की वर्णना मेरे द्वारा सम्भव नहीं है। हे धर्म रूप ग्रह के स्तम्भ, हे संसार को प्रकाशित करने वाले सूर्य, हे अनुकम्पा रूप लता को धारण करने वाले महावक्ष, हे जगन्नाथ, इस संसार की रक्षा कीजिए। हे भगवन, आपकी देशना निर्वाण रूप दरवाजे को खोलने में कुञ्जी की भाँति है, जिसे भव्य जन ही श्रवण करते हैं। आपकी आकृति उज्ज्वल दर्पण की भाँति मेरे हृदय में प्रतिबिम्बित होकर निर्वाण का कारण बने ।'
(श्लोक १८७-१९४) इस भाँति स्तवना कर वे प्रभु को गोद में लेकर शून्य पथ से देवी सुमंगला के कक्ष में आए और प्रभु को उनके पास सुलाकर अपने आवास को लौट गए।
(श्लोक १९५) ___जब वे माँ के गर्भ में थे तब माँ की मति प्रखर हो गई थी अतः प्रभु के पिता ने उनका नाम रखा सुमति । इन्द्र नियुक्त