Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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चकित होकर रानी को लिए राज-सभा में पहुंचे। दोनों सौतों को बुलाया गया। उन्होंने भी पूर्व की भाँति ही अपना वक्तव्य दिया। रानी वादी और प्रतिवादी का विवरण सुनकर बोली-'मेरे गर्भ में तीन ज्ञान के धारक तीर्थंकर हैं। जब वे जन्म ग्रहण करेंगे तब अशोक वृक्ष के नीचे वे ही इसका निर्णय करेंगे। तुम लोग तब तक के लिए प्रतीक्षा करो।'
(श्लोक १६४-१६९) सौतेली माँ ने यह बात मान ली; किन्तु सगी माँ ने स्वीकार नहीं किया। बोली-'महारानी, मैं इतने दिनों तक प्रतीक्षा नहीं कर सकती। आप अभी इसका निर्णय कीजिए। इतने दीर्घ समय तक अपने पुत्र को मैं सौतेली माता के अधीन नहीं कर सकती।'
(श्लोक १७०-१७१) उसकी बात सुनकर महारानी ने अपना निर्णय सुनाया-- 'यही पुत्र की माँ है, कारण, बिना पुत्र के वह बहुत दिनों तक नहीं रह सकती। सौतेली माँ रह सकती है क्योंकि वह उसका पुत्र नहीं है और धन तो दोनों का ही है। पूत्र निर्णय का विलम्ब माँ कैसे सह सकती है ? तुम विलम्ब नहीं सह सकती हो अतः यह पुत्र तुम्हारा है, तुम पुत्र को लेकर घर चली जाओ। यह पुत्र उसका नहीं है यद्यपि वह इसको चाहती है और इसका लालन-पालन भी किया है। पिक-शावक काक द्वारा पालित होने पर भी कोयल ही होता है।'
(श्लोक १७२-१७६) गर्भ के प्रभाव से जब महारानी ने अपना निर्णय सुनाया तो चतुर्विध-सभा आश्चर्यचकित हो गई। उस बालक की माँ और सौतेली माँ प्रभात और सन्ध्या के उन्मीलन और निमिलनकारी पद्म की तरह उत्फुल्ल और मलिन होकर दोनों घर लौट गईं।
(श्लोक १७७-१७८) ___ शुक्लपक्ष का चन्द्र जिस प्रकार कला में बढ़ता जाता है उसी प्रकार गर्भ क्रमशः बढ़ता गया। रानी को उसमें बिल्कुल कष्ट नहीं हुआ। उसे लगा जैसे वह प्रतिदिन ह्रास होता जा रहा है। नौ महीने साढ़े सात दिन व्यतीत हो जाने पर बैशाख शुक्ला अष्टमी को चन्द्रमा जब मघा नक्षत्र में आया तब सुमंगला देवी ने पूर्व दिशा जिस प्रकार चन्द्र को जन्म देती है उसी भाँति एक पुत्र-रत्न को जन्म दिया। प्रसव के समय उन्हें जरा भी कष्ट नहीं हुआ। पुत्र