Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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लक्ष्मी हो ऐसी उनकी महारानी का नाम था सुमंगला । वे अपने पति के हृदय में निवास करती थीं, पति उनके हृदय में । अतः मानो वे एक देह में ही स्थित थे । चाहे प्रासाद हो या उद्यान, या कहीं विचरण कर रही हो वे देवता की तरह अपने पति का ही ध्यान करती रहती थीं । रूप और लावण्य में वे अप्सराओं को भी पराजित करती थीं । उन सुनयना का मुख - सौन्दर्य चन्द्र को भी अतिक्रमण करता था । उनकी अनुपम आकृति और सौन्दर्य रत्न और अंगूठी की भाँति एक दूसरे को शोभान्वित करते थे । पौलोमी के साथ जिस प्रकार महेन्द्र सुख भोग करता है उसी प्रकार राजा उनके साथ अनंत सुख भोग करते ।
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( श्लोक १३३ - १३८)
पुरुष सिंह के जीव ने वैजयन्त विमान में तैंतीस सागर की आयु पूर्ण की । श्रावण शुक्ला द्वितीया के दिन चन्द्र जब मघा नक्षत्र में था उन्होंने विमान से च्वय कर सुमंगला देवी के गर्भ में प्रवेश किया । सुमंगला देवी ने हस्ती आदि १४ महास्वप्न देखे जो कि तीर्थंकर के जन्म को सूचित करता था । पृथ्वी जिस भाँति रत्न को गर्भ में धारण करती है उसी प्रकार सुमंगला देवी ने त्रिलोकनाथ को गर्भ में धारण किया । ( श्लोक १३८-१४२) उसी समय एक धनाढ्य व्यवसायी ने अपनी दोनों पत्नियों को लेकर व्यवसाय के लिए दूर विदेश में गमन किया था । उसकी दोनों पत्नियाँ देखने में प्रायः एक सी थीं। उनमें से एक ने राह में एक पुत्र को जन्म दिया । उसका दोनों ने मिलकर लालन-पालन किया । धन उपार्जन कर व्यवसायी जब घर लौट रहा था उसी समय हठात् वह मर गया । भाग्य ऐसा ही अनिश्चित होता है । उसकी पत्नियों ने अश्रु सिक्त मुख लिए उसकी अन्त्येष्टि क्रिया संपन्न की । तदुपरान्त दूसरी पत्नी पुत्र की माँ के साथ झगड़ा करती हुई बोली- 'यह पुत्र और सम्पत्ति मेरी है ।' पुत्र की माँ और विमाता जिनमें एक पुत्र को और दूसरी पुत्र और सम्पत्ति पाना चाह रही थी अतिशीघ्र अयोध्या लौटी । वहाँ उन्होंने स्व-परिवार एवं अन्य परिवारों के सम्मुख अपना विवाद रखा; किन्तु कोई भी इसका समाधान नहीं दे सका। इस विवाद को लेकर तब वे राजा के पास गयीं । राजा ने उन्हें राज सभा में बुलाया और विवाद का कारण बताने को कहा | ( श्लोक १४३ - १५० )