Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सदैव भगवान के साथ रहती।
(श्लोक ३८५-३८९) तदुपरान्त भगवान् चौबीस अतिशयों से सुशोभित और साधुसाध्वियों द्वारा परिवत्त होकर अन्यत्र विहार कर गए। उनके शासन में दो लाख श्रमण, तीन लाख छत्तीस हजार साध्वियां, इक्कीस हजार एक सौ पचास पूर्वधर, नौ हजार छह सौ मनःपर्याय ज्ञानी, बारह हजार एक सौ पचास अवधिज्ञानी, पन्द्रह हजार केवलज्ञानी, दो सौ कम बीस हजार वैक्रिय लब्धिधारी, बारह हजार वादी, दो सौ निन्यानवे हजार श्रावक, छह सौ छत्तीस हजार श्राविकाएँ थीं।
(श्लोक ३९०-३९२) केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात चार पूर्वाङ्ग और चौदह वर्ष कम एक लाख पूर्व तक सम्भव स्वामी ने विचरण किया। तत्पश्चात् सर्वज्ञ प्रभु ने अपना निर्वाण समय निकट जानकर अनुवर्ती श्रमणों सहित सम्मेद शिखर पर पधारे। वहां आपने एक हजार मुनियों सहित पादपोपगमन अनशन ग्रहण किया । असुरेन्द्र और देवेन्द्र भी भगवान् का मोक्षकाल निकट जानकर वहां आए और भक्तिभाव सहित त्रिलोकनाथ की सेवा करने लगे। पादपोपगमन अनशन के एक मास व्यतीत हो जाने पर पर्वत की तरह स्थिर सम्भव स्वामी समस्त क्रियाओं का निरोध कर शैलेशीकरण ध्यान में स्थित हुए। चैत्र शुक्ला पंचमी को जब चन्द्र मृगशिरा नक्षत्र में था तब अनन्त चतुष्टय प्राप्त होकर प्रभु ने सिद्धलोक में गमन किया। इसी भांति एक हजार मुनि भी भगवान के अकलंक अवयव रूप में सिद्धलोक को प्राप्त हो गए।
(श्लोक ३९३.४०२) कुमारावस्था की ४५ लाख पूर्व, राजा रूप की ५४ लाख पूर्व और ४ पूर्वांग, छद्मस्थ अवस्था की ४ पूर्वांग कम एक लाख पूर्व, इस प्रकार सब मिलाकर साठ लाख पूर्व की आयु भोगकर अजितनाथ स्वामी के निर्वाण के तीस लाख क्रोड़ सागरोपम के पश्चात् संभवनाथ स्वामी मोक्ष को प्राप्त हुए।
(श्लोक ४०३-४०५) तब इन्द्रों ने संभवनाथ स्वामी की देह को संस्कारित किया और अन्यान्य करणीय कर्म सम्पादित किए। प्रभु के ऊपर और नीचे के दांत उन्होंने परस्पर बांट लिए। अन्य देवों ने उनकी अस्थियों को संगृहीत किया। सभी इन्द्र अपने-अपने आवास को लौट गए और वहाँ मानवक स्तम्भों पर पूजा के लिए भगवान् की