Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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केवलज्ञान के पश्चात् आठ अंग और अठारह वर्ष कम एक लाख पूर्व व्यतीत हो जाने पर अपना निवणि समय निकट जानकर भगवान् सम्मेत शिखर पहुंचे। देवताओं सहित इन्द्र और राजन्यों द्वारा सेवित भगवान् ने एक हजार मुनियों सहित एक मास का उपवास किया। वैशाख महीने की शुक्ल अष्टमी को चन्द्रमा जब पुष्य नक्षत्र में आया तब भगवान् अभिनन्दन स्वामी और एक हजार मुनि शैलेशीकरण ध्यान से अघाती कर्म क्षयकर जहाँ से पुनः लौटना नहीं पड़े उस मोक्ष धाम को प्रयाण कर गए। भगवान् साढ़े बारह लाख पूर्व तक राजपुत्र रूप में, साढ़े छत्तीस लाख पूर्व और आठ अंग तक राजा रूप में, आठ अंग कम एक लाख पूर्व श्रमण रूप में, पचास लाख पूर्व तक पृथ्वी पर विचरण किया। सम्भव स्वामी के निर्वाण के दस लाख कोड़ सागर के पश्चात् अभिनन्दन स्वामी का निर्वाण हुआ। शक ने प्रभु और मुनियों को अन्त्येष्टि क्रियाएँ सम्पन्न की। देव और असुर उनकी दाढ़ें, दांत और अस्थियाँ पूजा के लिए ले गए। नंदीश्वर द्वीप में शाश्वत जिनों की अष्टाह्निका महोत्सव कर इन्द्र और देवगण स्व-स्व विमान को और राजन्य वर्ग स्व-स्व महलों को लौट गए।
(श्लोक १६७-१७५) द्वितीय सर्ग समाप्त
तृतीय सर्ग सम्यक ज्ञान के मूल, दुस्तर संसार-सागर को अतिक्रम करने में सेतु रूप भगवान सुमतिनाथ को मैं प्रणाम करता हूं। उन्हीं के अनुग्रह से संसार के भव्य जीवों के आनन्द रूप वृक्ष को सिंचित करने में जो सक्षम हैं ऐसे आपके जीवन का मैं सम्यक् रूप से वर्णन करूंगा।
(श्लोक १-२) जम्बूद्वीप के पूर्व-विदेह को ऐश्वर्य से उज्ज्वल करने वाला पुष्कलावती नामक एक प्रदेश था। उसी प्रदेश में शङ्खपुर नामक एक नगर था जिसका आकाश मन्दिरों एवं महलों की पताकाओं से सुशोभित था। उसी नगर में विजय सेन नामक एक राजा राज्य करते थे। उनका भुजबल इतना प्रबल था कि सेना तो मात्र शोभा के लिए ही अवस्थित थी। उनके सुदर्शना नामक एक रानी थी जो