Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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साथ-साथ अष्ट-प्रकारी पूजा सहित हर मन्दिर में अष्टाह्निका महोत्सव करवाया।
(श्लोक ५०-५५) ____ दोहद पूर्ति के आनन्द से आनन्दिता रानी का मूख पूर्ण चन्द्र की तरह विकसित हो गया। लता जिस प्रकार फल उत्वन्न करती है, रानी ने भी उसी प्रकार यथासमय एक पुत्र-रत्न को जन्म दिया। राजा ने चिन्तामणि रत्न की तरह हर याचक को प्रार्थित वस्तु दान दी। चन्द्र जिस प्रकार समुद्र को उच्छवसित करता है उसी भाँति आनन्दमना राजा ने पुत्र-जन्म का महामहोत्सव सम्पन्न किया । तदुपरान्त पारिवारिक लोगों की तरह नगर निवासियों ने भी पुत्रजन्म का उत्सव किया।
(श्लोक ५६-५८) रानी के स्वप्नानुसार राजा ने पुत्र का नाम पुरुषसिंह रखा। धात्रियों द्वारा पालित होकर माता-पिता और प्रजा की इच्छा के अनुरूप नवजातक क्रमशः बड़ा होने लगा। चन्द्र जिस प्रकार कला को प्राप्त करता है उसी प्रकार उसने भी समस्त कलाएँ अधिगत कर लीं और कामदेव के क्रीड़ा उद्यान रूप यौवन को प्राप्त किया। कूल, कला और सौन्दर्य में उसके अनुरूप आठ राज कन्याओं के साथ उस दीर्घबाहु का विवाह कर दिया गया। देव जिस प्रकार अप्सराओं के साहचर्य में सुख-भोग करते हैं वैसे ही पुरुषसिंह भी आठों पत्नियों के साथ इन्द्रिय सुख भोग करने लगे।
(श्लोक ५९-६३) इच्छानुरूप क्रीड़ा करने के लिए पुरुषसिंह एक दिन मानो मूर्त बसन्त या स्वयं कामदेव हो इस प्रकार उद्यान में विहार करने गया। वहाँ उसने प्रशान्तचित्त और रूप में अनंग को भी परास्त करने वाले विनयनन्दन नामक एक मुनि को देखा। उन्हें देखते समय लगा जैसे वह अमृत पान कर रहा है । अतः उसके नेत्र, हृदय देह के अन्यान्य भाग आनन्द से उत्फुल्ल हो उठे। वह सोचने लगे।
(श्लोक ६४-६६) गणिका के पास रहकर भी पत्नी के प्रति आनुगत्य रखना, दस्युओं के पास रखी गई धरोहर का रक्षित रहना, स्त्री राक्षसी के समीप आत्म-प्रशान्ति को बनाए रखना उत्तम व्रतों का हा परिणाम है जिसके फलस्वरूप उन्होंने स्थिर यौवन और अप्रतिम सौन्दर्य को प्राप्त किया है जो कि हमारे भीतर आनन्द का उद्रेक कर रहा है।