Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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३४] नहीं होते । आपमें सब कुछ अस्वाभाविक है। अनिष्टकारी भी लाभवान होता है, अनुगामी भी उपेक्षित । इस विपरीत व्यवहार के सम्पर्क में कौन प्रश्न कर सकता है ? आपका मन तभी तो ध्यान की इस उच्चता में अवस्थित है कि मैं सुखी या सुखी नहीं हूं, या दुःखी या दुःखी नहीं हूं, ऐसे विचार नहीं आते । ध्याता, ध्यान और ध्येय सब एक आत्मा में मिल जाते हैं। ध्यान की ऐसी उच्च अवस्था को अन्य कैसे समझ सकते हैं ?' (श्लोक १२७-१३५)
शक्र की स्तवना के पश्चात प्रभु ने अपनी देशना प्रारम्भ की जो कि एक योजन तक सुनाई पड़ रही थी
_ 'यह संसार विपत्ति का आकर है। जो इसमें डूबा हुआ है उसकी माता-पिता, भाई-बन्धु या अन्य कोई रक्षा नहीं कर सकता। इन्द्र एवं उपेन्द्र भी जब मृत्यु के अधीन हैं तब मृत्यु के भय से 'मनुष्य की रक्षा कौन कर सकता है ? माता-पिता, भाई-बहिन, पुत्र-कन्या देखते ही रह जाते हैं और कर्म द्वारा प्रेरित अनाथ मनुष्य यम मंदिर चला जाता है। मोहाविष्ट मनुष्य परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने पर दुःख करता है किन्तु भविष्य में उसका स्वयं का भी यही हाल होगा उस पर दुःख नहीं करता । दावाग्नि दग्ध अरण्य में जिस प्रकार मृग-शावक को आश्रय नहीं है, उसी प्रकार दुःख वेदना से पीड़ित संसार में मनुष्य को भी कहीं आश्रय नहीं है । अष्टविध आयुर्वेद, जीवनदायी उपकरण, मन्त्र-तन्त्र कोई भी उसे मृत्यु से नहीं बचा सकते। चतुर्विध सैन्य द्वारा परिवत्त और अस्त्र-शस्त्रों द्वारा रक्षित राजा को भी यम के अनुचर दीन-हीन की तरह जबर्दस्ती छीन ले जाते हैं। जिस भाँति गाएँ आदि पशु मृत्यु से बचने का उपाय नहीं जानते उसी प्रकार मनुष्य भी मृत्यू से बचने का उपाय नहीं जानता। बचने की इनकी मूर्खता ही कैसी है ! जो लोग अस्त्र द्वारा अपने विरोधी को संसार से हटा देते हैं उन्हें ही यम की भकुटि के सम्मुख दांतों में तृण धारण करना पड़ता है। यहाँ तक कि शुद्धाचारी मुनिगण भी जो अस्त्र की तरह व्रत धारण करते हैं वे भी मृत्यु का प्रतिरोध नहीं कर सकते। हाय, यह संसार ही अरक्षित है-राजाहीन, नायकहीन । कारण यमरूपी राक्षस इसे ग्रस लेता है। मृत्यु का प्रतिरोध तो धर्म भी नहीं कर सकता, केवल उत्तम गति प्राप्त करने में सहायक बनता है। अत: धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष