Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अब उनकी इच्छा दीक्षा ग्रहण करने की हुई तो लोकान्तिक देवों ने अमात्य की तरह उनके मनोभावों को जानकर उनसे निबेदन किया-'आपके संसार-त्याग का समय हो गया है । हे भगवन्, दुस्तर संसार-समुद्र अतिक्रम करने के लिए आप तीर्थ स्थापित कीजिए।'
(श्लोक १००-१०१) लोकान्तिक देवों के चले जाने के पश्चात् अभिनन्दन स्वामी ने बिना इच्छा या फलाकांक्षा के वर्षी दान देना प्रारम्भ किया। शक्र के आदेश से कुबेर द्वारा प्रेरित जम्भक देवगण बार-बार अर्थ लाकर अभिनन्दन स्वामी को देने लगे। वर्षीदान समाप्त होने पर अभिनन्दन स्वामी का दीक्षा-महोत्सव चौसठ इन्द्रों द्वारा साडम्बर सम्पन्न हआ। अभीष्ट सिद्धि के लिए स्नानाभिषेक के पश्चात देवदत्त वस्त्र और अलंकारों से भूषित होकर अर्द्ध-सिद्धा नामक पालकी पर उन्होंने आरोहण किया। सम्मुख भाग मनुष्य और पीछे का भाग देवों द्वारा वाहित शिविका से वे सहस्राम्रवन उद्यान में पहुंचे । पालकी से उतरकर अभिनन्दन स्वामी ने वस्त्रालंकारों का त्याग किया और इन्द्र प्रदत्त देवदृष्य वस्त्र कंधे पर रखा। माघ मास की शुक्ल द्वादशी को सन्ध्या के समय चन्द्र जब अभिजित नक्षत्र में था तब दो दिनों के उपवास के पश्चात् उन्होंने पंचमूष्ठि से केश उत्पाटित किया। शक ने उन केशों को अपने उत्तरीय में धारणकर उसी मुहूर्त में क्षीर-सागर में निक्षेप कर दिया। शक द्वारा देव असुर और मनुष्यकृत कोलाहल शान्त करने पर उन्होंने सामायिक उच्चारण कर चारित्र ग्रहण कर लिया। उसी मुहूर्त में उन्हें मनः पर्याय ज्ञान उत्पन्न हुआ और नारकी जीवों को भी महत भर के लिए सुख का अनुभव हुआ। आपके साथ एक हजार राजाओं ने देह-मैल की भाँति अपने-अपने राज्यों का परित्याग कर मोह-नाशक श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर ली। भगवान् को वन्दना कर प्रवासी जिस प्रकार वर्षाकाल में घर लौट जाते हैं उसी प्रकार शक्र और अन्यान्य इन्द्र एवं उनके अनुचर अपने-अपने निवास को लौट गए।
(श्लोक १०२-११३) दूसरे दिन अयोध्या के राजा इन्द्रदत्त के घर प्रभु ने खीरान्न ग्रहण कर उपवास का पारणा किया। देवताओं ने आकाश से रत्न, पुष्प, वस्त्र और सुगन्धित जल की वर्षा की, दुन्दुभि बजाई । देव