Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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होने के कर्म थे शिक्षा दी । उनके एक सौ दो गणधरों ने उस त्रिपदी के अनुसार बारह अङ्ग और चौदह पूर्वो की रचना की । शक्र द्वारा लाई गई बासक्षेप ग्रहण कर उस बासक्षेप को उन पर निक्षेप कर भगवान् ने द्रव्यादि के माध्यम से वह शिक्षा गण को देने का आदेश दिया । देवों ने भी दुन्दुभि वाद्य के साथ उन पर बासक्षेप किया। तब गणधरगण भगवान् के मुख से देशना सुनने की प्रतीक्षा करने लगे। भगवान् पुनः उसी दिव्य सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ गए और उन्हें पालनीय आचार की शिक्षा दी । प्रहर के अन्त में भगवान् ने देशना देनी बन्द कर दी। राज प्रासाद से चार प्रस्थ सुगन्धित अन्न की बलि लाई गई । उसे आकाश में उछाला गया। देवों ने उसे गिरने से पूर्व ही ग्रहण कर लिया। जो गिरा उसका आधा राजाओं ने
और शेष साधारण मानवों ने ग्रहण कर लिया । तदुपरान्त त्रिलोकनाथ उठकर खड़े हुए और क्लान्त न होने पर भी उत्तर द्वार से निकलकर मञ्च पर विश्राम करने लगे क्योंकि ऐसा ही नियम है ।
(श्लोक ३७३-३८१) भगवान् ने पादपीठ पर बैठकर गणधरों में प्रमुख चारु स्वामी ने भगवान् की शक्ति से अज्ञान का नाश करने वाला उपदेश दिया। द्वितीय प्रहर के अन्त में जैसे शनि के मध्याह्न के बाद पाठ बन्द किया जाता है, उपदेश देना बन्द कर दिया। तब देवगण, असुर एवं राजादि सभी प्रभु की वन्दना कर उत्सव के अन्त में जिस प्रकार लोग लौट जाते हैं उसी प्रकार आनन्दितमना बने अपने-अपने निवास को लौट गए।
(श्लोक ३८२-३८४) इस प्रकार तीर्थ स्थापित होने पर त्रिमुख नामक यक्ष प्रकट हुआ। उसके तीन मुख, तीन नेत्र और छह हाथ थे। उसकी देह का रंग काला और वाहन मयूर था। दो दाहिने हाथों में पाश और दण्ड था। तृतीय हाथ वरद मुद्रा में था। बायें तीन हाथों में एक में नींबू बिजोरा, दूसरे में पुष्पमाला और तीसरे में अक्षमाला थी। इसी भांति उनके तीर्थ में दुरितारि नामक यक्षिणी उत्पन्न हुई। उसके चार हाथ थे। देह का वर्ण सफेद और वाहन भेड़ था । दाहिने हाथों में एक वरद मुद्रा में और दूसरे में अक्षमाला थी। बायें हाथों में एक में सर्प और दूसरा अभय मुद्रा में था। शासन देव और देवी त्रिमुख व दुरितारि अङ्ग-रक्षक की भांति