Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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का धारक था। उस समय पृथ्वी पर सर्वत्र एक आलोक दीप्ति प्रसारित हो गई। नारकी जीवों ने भी मुहूर्त भर के लिए आनन्द का अनुभव किया।
(श्लोक ४९-५१) रात्रि के चतुर्थ याम में सिद्धार्था रानी ने सुख-शय्या पर सोते हुए चौदह महास्वप्न देखे : चार दन्त विशिष्ट श्वेत हाथी, जूही-सा श्वेत वृषभ, व्यादित मुख सिंह, अभिषिक्तमाना लक्ष्मी, पंचवर्णीय पुष्पमाल्य, पूर्ण चन्द्र, उज्ज्वल सूर्य, घण्टिकायुक्त ध्वज, स्वर्ण का पूर्ण कुम्भ, पद्म सरोवर, तरंगित समुद्र, देव विमान, रत्न-राशि और निधू म अग्नि ।
(श्लोक ५२-५६) जागने पर रानी ने स्वप्नों को राजा के सम्मुख निवेदित किया। सुनकर राजा बोले- 'देवी, तुम्हारे स्वप्नों से लगता है तुम त्रिलोकनाथ पुत्र को जन्म दोगी।' इन्द्र ने भी आकर ऐसा कहा'देवी, आप जिस पुत्र को जन्म देंगी वह चतुर्थ तीर्थङ्कर होगा।' रात्रि का शेष भाग रानी ने निद्रा-रहित रहकर बिताया। पद्म-कोष के बीज की तरह वह भ्र ण उनके गर्भ में गोपनीय रूप में वद्धिगत होने लगा। देवी सिद्धार्था उस गर्भ को सहज रूप में वहन करती थीं। सचमुच ही ऐसे जीवों का अवतरण पृथ्वी के आनन्द के लिए ही होता है। नौ मास साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर माघ मास शुक्लपक्ष में चन्द्र जब अभिजित नक्षत्र में था देवी सिद्धार्था ने सहज भाव से मर्कट लांछनयुक्त एक पुत्र को जन्म दिया। उसकी देह का रंग सुवर्ण-सा और दीप्ति सूर्य-सी थी। उसी समय तीनों लोक में एक आलोक व्याप्त हो गया एवं नारकी जीवों को भी मूहर्त भर के लिए आनन्द प्राप्त हुआ।
(श्लोक ५७-६४) स्व-स्व-निवास से ५६ दिक्कुमारियां आईं और प्रसूति एवं पुत्र के जन्म-कल्याणक का करणीय-कार्य यथाविधि सम्पन्न किया। सिंहासन कम्पित होने पर अर्हत् जन्म को अवगत कर शक देवों सहित पालक विमान में वहां आए। विमान से उतर कर प्रभु के घर में प्रवेश किया और तीर्थङ्कर एवं तीर्थङ्कर-माता की वंदना की। अवस्वापिनी निद्रा में माता को निद्रित कर प्रभ की प्रतिकृति उनके निकट रख शक्र ने पांच रूप धारण किए। एक रूप से उन्होंने प्रभ को गोद लिया। दूसरे से छत्र धारण किया। अन्य दो रूपों से चँवर डुलाने लगे और शेष एक रूप में वज्र हाथ में लेकर नृत्य