Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
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कर के उसके नगर को घेर लिया। वरुण भी अपने 'राजीव' और 'पुंडरीक' आदि पुत्रों और सेना को ले कर युद्ध-क्षेत्र में आया। घमासान युद्ध प्रारम्भ हो गया। इस युद्ध में रावण के वीर सामन्त खरदूषण को वरुण के पुत्रों ने पकड़ कर बन्दी बना लिया और अपने नगर में ले जा कर बन्दीगृह में डाल दिया। राक्षसों की सेना हताश हो कर छिन्नभिन्न होगई। वरुण इस विजय का हर्षोल्लास पूर्वक उत्सव मनाने लगा । अपनी सेना की दुर्दशा देख कर रावण ने अपने सभी विद्याधर राजाओं के पास युद्ध का निमन्त्रण भेजा । उसी युद्ध का एक निमन्त्रण प्रहलाद नरेश के पास भी आया था। दूत का सन्देश सुन कर प्रहलाद नरेश युद्ध की तैयारी करने लगे । जब पवनंजय ने यह बात सुनी, तो पिता के पास आया और उनका जाना रोक कर स्वयं युद्ध में जाने को तत्पर हो गया। अंजनासुन्दरी ने पति के युद्ध में जाने और प्रयाण के मुहूर्त की बात सुनी, तो वह पति की युद्ध-यात्रा देखने और पति के दर्शन करने के लिए भवन से नीचे उतर कर एक थम्बे के सहारे खड़ी हो गई । वह बहुत दुर्बल हो गई थी। उसका मुख म्लान और देह कृश हो गई थी। जब राजकुमार पवनंजय की सवारी निकट आई और कुमार की दृष्टि अपनी त्यक्ता पत्नी पर पड़ी, तो उसके रोष में वृद्धि हुई, उनकी भृकुटी चढ़ गई । उसने कुपित हो कर मुंह मोड़ लिया । अंजना ने पति द्वारा हुई अपनी अवगणना की कड़वी बूंट पीते हुए निवेदन किया--
"स्वामी ! आप युद्ध में जाने के पूर्व सब से मिले, किन्तु मेरी ओर तो देखा तक नहीं ? नाथ ! कम से कम रण में जाते समय एक बार भी मुझ से बोल लेते, तो मेरे मन में शांति रहती । अस्तु । आप विजयी होवें। आप यशवंत होवें और क्षेम-कुशल शीघ्र पधारें।"
पत्नी की उपरोक्त बात भी कुमार को शूल के समान खटकी । वे उस ओर से मुँह फिरा कर आगे बढ़ गए।
___ अंजना को इस अवगणना से बहुत निराशा हुई । वह हताश हो गई । कुमार के दुर्व्यवहार को वसंतमाला सहन नहीं कर सकी और वह उसे 'क्रूर निष्ठुर एवं कठोर हृदयी' आदि कहने लगी । अंजना ने सखी को रोकते हुए कहा
“सखी ! तू क्रुद्ध मत हो । रणभूमि में जाते हुए आर्यपुत्र के प्रति दुर्भाव नहीं लाना चाहिए । वे निर्दोष हैं । जो कुछ दोष है, मेरे अशुभ कर्मों का है ।"
अंजना अपने खंड में आ कर शय्या पर पड़ गई और तड़पने लगी। उधर राजकुमार अपने मित्र के साथ सेना की छावनी में पहुँचे । सेना का पड़ाव मानसरोवर पर हुआ । संध्या के समय सरोवर के किनारे एक चक्रवाकी की ओर युवराज का ध्यान गया।
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