Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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राम का मोह भंग, प्रव्रज्या और निर्वाण
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"तुम क्यों रोती हो ? कोनसी दुर्घटना हो गई ? कौन मर गया ? ऐं लक्ष्मण ? नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । मुझे छोड़ कर लक्ष्मण नहीं मर सकता । उसे कोई रोग हुआ होगा । मैं अभी उसका उपाय करता हूँ। तुम सब शान्त रहो।" ।
रामभद्रजी ने तुरन्त वैद्यों और ज्योतिषियों को बुलाया। अनेक प्रकार के औषधोपचार किये, मन्त्र-तन्त्र के प्रयोग भी कराये, परन्तु सभी निष्फल रहे । राम हताश हो कर मूच्छित हो गए। कुछ समय बाद मूर्छा दूर होने पर उनका हृदयावेग उमड़ा। वे रोने और विलाप करने लगे। विभीषण, सुग्रीव और शत्रुघ्न आदि भी रोने लभे । सभी की आँखे झरने लगीं । कौशल्यादि माताएँ, रानियें और पुत्र आदि भी शोकमग्न हो रुदन करने लगी। सारी अयोध्या शोकसागर में निमग्न हो गई। इस दुर्घटना ने लवण बौर अंकुश के हृदय में वैराग्य भर दिया । उन्होंने रामभद्रजी से निवेदन किया-"पूज्य ! हमारे लघुपिता परलोकवासी हो कर हमें शिक्षा दे गये हैं कि यह संसार और कामभोग नाशवान हैं । इन्हें छोड़ कर बरबस मरना पड़ेगा। हम अब ऐसे वियोग परिणाम वाले मंझोगों से विरक्त हैं। आप आज्ञा प्रदान करें, हम स्वेच्छा से संसार का त्याग करेंग।" बोनों बन्ध राम को प्रणाम करके चन दिए और अमृतघोष मुनि के पास दीक्षित हो कर बनुक्रम से मुक्ति प्राप्त कर ली।
राम का मोह-भंग, प्रव्रज्या और निर्वाण
: प्राणप्रिय भाई के अवसान और पुत्रों के संसार-त्याग के असह्य आघात से राम भरबार शोकाकूल हो मूच्छित होने लगे । मोहाभिभूत होने के कारण लक्ष्मण की मृत्यु
उन्हें विश्वास ही नहीं होता था। वे सोचते थे-" लक्ष्मण रूठ गया है । किसी कारण ह सभी लोगों से विमुख हो कर मौन है ।" वे कहने लगे--
- "हे भाई ! मैंने तेरा क्या अपराध किया ? यदि अनजान में मुझ-से कोई अपराध हो मया हो, तो बता दे । तेरे रूठने से लव-कुश भी मुझे छोड़ कर चले गये । एक तेरी वसन्नता से सारा संसार मेरे लिए दुःखमय हो गया है । बन्धु ! मान जा। प्रसन्न हो जा। सरा प्रसन्नता मेरा जीवन बन जायगी। सीता गई और पुत्र भी गये । यदि तू मेरा बना रा, तो मैं अन्य अभाव भी प्रसन्नतापूर्वक सहन कर लूंगा। बोल, बोल कुछ तो बोल ! तू सना निर्मोही क्यों हो गया है ?"
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