Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सत्यभामा श्रीकृष्ण पर बिगड़ती है
५४३ नक्कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक्ष
भी तृप्त नहीं हुए और यह कह कर चले गए कि--" मैं जहा भोजन मिलेगा, वहीं जाऊँगा।"
___सत्यभामा निराश एव खदित हुई। महात्मा अप्रसन्न हो कर चले गए और वह सुरूपा से कुरूपा बन गई । अब क्या हो ? पहले तो उसने अपना शरीर स्वच्छ किया, नये वस्त्र पहिन, फिर उसने सोचा--" रुक्मिणी के बाल कटवा कर मँगवालूं।" उसने अपनी दासियों को एक पात्र दे कर भेजा और कहलवाया--
__ " मेरे पुत्र का विवाह हो रहा है । वचन के अनुसार अपने बाल काट कर इस दासी के साथ भेजो।"
दासियाँ पहुँची और सत्यभामा का आदेश सुनाया। रुक्मिणी के हृदय को आघात लगा। प्रद्युम्न ने बाल लेने आई दासियों के ही बाल काट कर पात्र में डाल दिये और अपने साथ लाये हुए सत्यभामा के बाल भी झोली में से निकाल कर उस पात्र में डाले और कहा-" जाओ, ये बाल अपनी स्वामिनी को देना।" दासियाँ रोती और गालियाँ देती हुई सत्यभामा के पास पहुँची। उन सब की दशा देख कर सत्यभामा क्रुद्ध हुई और क्रोध में ही भुनभुनाती हुई श्रीकृष्ण के पास पहुंची और बोली;
सत्यभामा श्रीकृष्ण पर बिगड़ती है
" स्वामी ! आपकी चहेती महारानी की यह धृष्टता देखो । आपके सामने उसने वचन दिया था कि 'यदि तुम्हारे पुत्र के लग्न पहले होंगे, तो मैं अपने मस्तक के बाल काट कर तुम्हारे अर्पण कर दूंगी और तुम्हारी दासी बन जाऊँगी ।" मेरे पुत्र का विवाह हो रहा है। मैने उसके बाल लेने के लिये दासियों को भेजी, तो उस चण्डिका ने सब के बाल काट कर मेरे पास भेजे । वे विचारी सब मुंडित-मस्तक रोती हुई लौट आई । उस राक्षसी का इतना दुःसाहस कि मेरी दासियों के साथ इस प्रकार की नीचता करे? आपने उसे सिर पर चढ़ा रखी है । अब आप उसके बाल ला कर दीजिये । आप उसके जामिनदार है। आपको उसके बाल ला कर देना चाहिए।"
"परन्तु महारानीजी ! आपके सुन्दर बाल.........?"
"बस, बोलो मत"--श्रीकृष्ण के प्रश्न को बीच ही में रोक कर सत्यभामा बोली- " अपने उत्तरदायित्व का पालन करो।"
* देखो पृ. ३९५ । ।
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